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षट् ख ए डा गम
षट्-खण्डागम-यह दिगम्बर जैन परम्परा का सर्वमान्य ग्रन्थ है। इसके षट्-खण्डों के नाम क्रमश:-(१) जीवस्थान, (२) क्षुद्रबन्ध, (३) बन्धस्वामित्व, (४) वेदनाखण्ड, (५) वर्गणाखण्ड और (६) महाबन्ध हैं । दिगम्बर परम्परा में प्रथम खण्ड के कर्ता पुष्पदन्त और शेष पांच खण्डों के कर्ता भूतबलि मुनि माने जाते हैं, जो अर्हबलि के शिष्य थे। टीकाकार भट्टारक वीरसेन ने भी पाँच खण्डों के कर्ता भूतबलि को ही माना है । परन्तु आगम के सम्पादकों ने पिछले पाँच खण्डों के नामों के साथ भी पुष्पदन्त का नाम जोड़ दिया है। इसका कारण पुष्पदन्त और भूतबलि दोनों ने यह आगम-ज्ञान धरसेन से प्राप्त किया था, ऐसी किंवदन्ती हो सकती है।
सटीक इस सिद्धान्त के पढ़ने से जो विचार हमारे मन में स्फुरित हुए हैं उनका दिग्दर्शन निम्न प्रकार से है
अर्हबलि के पुष्पदन्त और भूतबलि ये दो शिष्य थे, ऐसा दिगम्बर परम्परा के प्राचीन साहित्य से अथवा शिलालेखों से ज्ञात नहीं होता। दिगम्बरीय मान्यता के अनुसार यतिवृषभ की मानी जाने वाली "तिलोयपण्णत्ति" में ये नाम उपलब्ध होते हैं। दिगम्बर जैन विद्वान् यतिवृषभ का समय विक्रम की षष्ठ शती मानते हैं, परन्तु हमारे मत से “यतिवृषभ" ऐतिहासिक व्यक्ति हुए ही नहीं हैं। “यतिवृषभ' यह नाम धवला टीका के कर्ता भट्टारक वीरसेन का एक कल्पित नाम है और उनकी कही जाने
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