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निबन्ध-निचय
पश्चात्कृत ने तब से हमारे पास आना छोड़ दिया और खण्डकपाली की मार्फत पूज्यपाद का सम्पर्क विशेष साधने लगा । पूज्यपाद के ध्यानरूम में घुस, द्वार बन्द कर दोनों उन पर दबाव डालते और कहते - " ऐसा करने से तो सेठ कस्तूरभाई नाराज हो जायेंगे । आपके पक्ष में रहने वालों का एक प्रकार से विश्वासघात किया माना जायेगा" इत्यादि बातें कानों पर डालकर इस भद्र स्थविर का मन डांवाडोल कर दिया ।
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कतिपय दिनों के बाद मुझे दोपहर को ध्यान के रूम में बुलाकर कहा - "भाई ! मैं तो बोलते-बोलते भूल जाता हूँ, सभा में एक के स्थान में दूसरा कुछ बोल जाऊँ तो कैसा गिना जाय ।
मैंने कहा - साहिबजी आपका वक्तव्य आप ही सुनायें, ऐसा कोई नियम नहीं है । आप दूसरे से कहला सकते हैं, अथवा पढ़वा सकते हैं ।
मेरे स्पष्टीकरण के बाद उनके मुंह से ऐसी अनेक बातें निकलीं जो पश्चात्कृत ने भराई थीं । सेठ कस्तूरभाई की नाराजगी के सम्बन्ध में मैंने कहा - साहिब ! सेठ कस्तूरभाई को यह निवेदन पहले पढ़ाकर उनका अभिप्राय ले लेंगे । जो वे कहेंगे कि इसमें कुछ बांधा नहीं है, तब तो यह निवेदन बाहर पाड़ना अन्यथा नहीं । मेरे उक्त कथन से वे मौन रहे ।
मैंने आगे कहा- आपको कुछ भी बात गले नहीं उतरती ? आपने कहा - "भाई, मुझे तो कुछ भी गम नहीं पड़ता और संकल्प विकल्प हुआ करते हैं ।
मैंने कहा- साहिबजी ! बात प्रसंग के अनुरूप थी, आपका महत्त्व बढ़ाने वाली थी । इस पर भी आपके गले न उतरती हो तो छोड़ दीजिये, मैं अपनी प्रार्थना वापिस खींच लेता हूँ । आप अब इस विषय में कुछ भी संकल्प विकल्प न करें ।
मेरे उपर्युक्त कथन पर उन्होंने कहा - " दूसरे बारोबार कर लेते हों तो मैं कब इन्कार करता हूँ । सब दो तेरस करेंगे तो मैं कहाँ जुदा पड़ने वाला हूँ । अहमदाबाद में श्रीपूज्य ने दो पूनम की
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दो तेरस कराई तब से
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