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निबन्ध - निचय
: २६५
सुबाजी ने असत्य प्ररूपणा जानकर उनके व्याख्यान में जाना बन्द किया, फिर भी दो तेरस उन्होंने भी की थी। वैसे दो तेरस करना शास्त्रीय है नहीं, फिर भी दूसरे कर लेंगे तो हम अकेले दो पूनम पकड़ कर नहीं बैठेंगे । तथापि जो बात झूठी है उसे हम सच्ची के रूप में कैसे स्वीकार करें |
मैंने कहा - साहिबजी, अब इस बात को छोड़िये, दूसरे जैसा करना होगा कर लेंगे । आपको उनको कुछ कहने की आवश्यकता नहीं, आप किसी प्रकार के संकल्प-विकल्पों में न पड़ियेगा ।
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