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________________ २६२ : निबन्ध-निचय फाइलों में जांच करवाकर देखा गया तो श्री विजयहीरसूरिजी की कारकोदों दर्मियान ३ वार भा० शु० ५ की वृद्धि आई थी । पर सांवत्सरिक पर्व प्रत्येक बार प्रौदयिक चतुर्थी को ही हुआ था । प्राचीन कालीन जैन - तिथि पत्रकों में भी पूर्णिमाएँ तथा पंचमियां जहाँ-जहाँ बढ़ी थीं वहां सर्वत्र दो ही लिखी थीं और उनमें दूसरी पूर्णिमा और पंचमियों को पालनीय तिथि लिखा था । सब खुलासों को हृदयंगत करने के बाद ही हमने नवीन भीतियें तिथि-पत्रकों का प्रचार करवाया था । यह बात भी हमारे ध्यान बाहर नहीं थी कि हमारा यह कार्य एक पाक्षिक है, सब मान्य होने की आशां नहीं है । लगभग १०० वर्षों से जो वस्तु रूढ़ हो चुकी है उसे गलत समझ कर सत्य मार्ग को ग्रहण करने वाले मनुष्य विरले निकलेंगे । कुछ समय के लिए मतभेद तो रहेगा ही, पर बार बार के संघर्ष से भविष्य में इस विषय में ऊहापोह होता रहेगा और कोई शुभ समय भी आयेगा कि जब सांवत्सरिक पर्व के दिन का ऐक्य हो जायगा । बाद में दो पूणिमादि का ही मतभेद रहेगा, क्योंकि यह भूल प्राचीन है । हमने तथा हमारे गुरु- प्रगुरुत्रों ने भी यह भ्रान्त मान्यता मानी है । किसी भी प्रकार इसका समाधान न हुआ तो हम इस विषय की सत्य वस्तु को छोड़ के भी गच्छ में समाधान कर लेंगे । यदि तपागच्छ का सर्व संघ प्रदयिक चतुर्थी के दिन को इधर-उधर न करने का विश्वास दिलायेगा तो दूसरे सब बखेड़ों को छोड़कर समाधान कर लेंगे । इस समय अहमदाबाद आने के बाद यहां का वातावरण समाधान के लिए अनुकूल लगा । हमने सोचा यदि पूज्यपाद प्राचार्यदेव श्री विजयसिद्धिसूरीश्वरजी की भावना समाधान की हो और पूर्णिमा त्रयोदशी की हानि वृद्धि का बखेड़ा छोड़ दें तो तिथि - मतभेद का अन्त ग्रा जाय । पूज्यपाद के जीवन की शताब्दी पूरी होने के प्रसंग पर नयी शती के प्रवेश में आपके मुख से समाधानकारक चार शब्द कहला दिये जायें तो संघ के लिए आनन्ददायक होंगे और धीरे धीरे तपागच्छ में से तिथि -विषयक मतभेद दूर होने का मार्ग भी निकल आयेगा, इस आशय से हमने पूज्यपाद से कोई निवेदन बाहर पड़वाने का निश्चय किया और समय पाकर पूज्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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