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२५६ :
निबन्ध-निचय
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करना पड़ा। इस घटना वाले वर्ष में श्री विजयनीतिसूरिजी महाराज का चातुर्मास्य मारवाड़ में वांकली में था । उनकी तबियत नादुरुस्त थी और चातुर्मास्य के बाद ज्यादा नादुरुस्त होने के कारण से श्री कल्याणसूरि भी मारवाड़ में आये थे । ये समाचार हम को भीनमाल तरफ के विहार में मिले । कल्याणसूरि की सिद्धिसूरिजी को दी हुई नोटिस को मैं भूला नहीं था, तुरन्त श्री नीतिसूरिजी महाराज पर पत्र लिखा और सूचित किया कि "आपकी तबीयत अस्वस्थ सुनकर बड़ा दुःख हुआ । अब तबीयत कैसी है, कृपया सूचित करायें । आप श्रीजी की तबीयत अस्वस्थ रहा करती है, हमारे पूज्य आचार्य श्री सिद्धिसूरिजी भी तटद्र ुम हैं । आप दोनों पूज्य पुरुषों की उपस्थिति में तिथि चर्चा का कुछ निपटारा हो जाता तो अपने गच्छ में से यह मतभेदजन्य जघन्य क्लेश हमेशा के लिए शांत हो जाता ।"
हमारे इस पत्र के उत्तर में श्री नीतिसूरिजी महाराज की तरफ से श्री कल्याणसूरि द्वारा लिखा हुआ पत्र हमें नीचे लिखे भाव का मिला
"तुम और तुम्हारा पक्ष किस रीति से तिथि - मतभेद का निपटारा करना चाहते हो वह लिखना, ताकि उस पर विचार किया जायेगा ।"
हमने उक्त पत्र के उत्तर में लिखा- "दूसरे सभी प्रमाण पुरावों को एक तरफ रखकर "जैन विकास" में जिसका ब्लोक छपाया है उसी श्री श्रानन्दविमलसूरिजी के पन्ने की परीक्षा कराई जाय और यह ब्लोक वाला पन्ना सच्चा साबित हो जायगा तो हम तथा हमारा पक्ष सब मंजूर कर लेंगे । पाने में लिखे मुजब दो पूणिमात्रों की दो त्रयोदशी करेंगे और यदि पन्ना जाली ठहरेगा तो आपको प्रचलित मान्यता को छोड़कर हमारी मान्यता को स्वीकार करना होगा ।"
हमारे उक्त पत्र का श्री नीतिसूरिजी या अहमदाबाद में नोटिस देकर पराक्रम बताने वाले श्री कल्याणसूरि की तरफ से कुछ भी उत्तर नहीं मिला । हमको जरा निराशा हुई और साथ-साथ संतोष भी हुआ कि सिद्धिसूरिजी को नोटिस देने वाले कितने गहरे पानी में हैं ।
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