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________________ २५४ । निबन्ध-निचय अब कल का दिन ठहरो तो इसकी फेयर कॉपी लिख देंगे। परन्तु उनके लिये तो एक-एक घड़ी एक मास हो गया था, कहने लगे-“साहब ! बड़ा अर्जेन्ट काम है, अब तो हमको जल्दी से जल्दी रवाना करो इसो में लाभ है।" हमने रफ कॉपी और ४ हमारे पट्टक इनको देकर कहा"देखो ! ये हमारे ४ पट्टक और जवाबदावे की यह हमारे हाथ की रफ कॉपी वहाँ का काम निपटने के बाद हमको वापिस भेजना होगा। बापालाल ने कबूल किया और सांझ का भोजन कर वे गुड़ा-बालोतरा से एरनपुरा रोड स्टेशन के लिए रवाना हुए। ३. हम मारवाड़ में थे तब "जैनविकास'' के एक मासिक अङ्क में "श्री आनन्दविमलसूरि" के नाम पर चढ़े हुए एक नकली पन्ने का छपा हुआ ब्लोक देखा। उस पन्ने में श्री आनन्दविमलसूरि के समय में श्रावण शुदि १५ की वृद्धि में त्रयोदशी की वृद्धि की थी ऐसा उल्लेख था, जिस पर से ब्लोक बनाया था। वह पन्ना लिपि की दृष्टि से बीसवीं शती का लिखा हुआ था और भाषा तथा इतिहास की दृष्टि से भी वह स्पष्टतया कल्पित था। यह सब होते हुए भी गणित की कसौटी पर चढ़ा कर जांच करने के लिये हमने उसे "जोधपुर आर्कियोलोजिकल सुप्रिन्टेण्डेन्ट की ऑफिस में" भेजा। गणितीय तपास होने के बाद वहां से रिपोर्ट मिली कि जिस वर्ष में श्रावण पूर्णिमा की वृद्धि होना इसमें लिखा है उस वर्ष में वास्तव में श्रावणी पूर्णिमा की वृद्धि नहीं हुई थी और न उस दिन तथा उसके पूर्व तथा अगले दिन भी मंगलवार था।" यह रिपोर्ट भी श्री रामचन्द्रसूरि पर भेजी गई थी। इसो अर्से के दर्मियान श्री सागरानन्दसूरिजी की तरफ से "शास्त्रीय पुरावा संग्रह' इस नाम से कतिपय कूट पन्ने छपकर प्रकाशित हुए थे। हमने इन सब पन्नों को ध्यान से पढ़ा पौर वे बहुधा कूट साबित हुए थे और लगभग ८० पृष्ठों में उन सब का हमने खण्डन लिखकर तैयार किया था और वह खण्डन भी श्री रामचन्द्रसूरिजो के पास भेज दिया था। वादि-प्रतिवादियों के वक्तव्यों पर गम्भीर विचार करने के बाद पंच श्री वैद्य ने तिथि-मतभेद विषयक फैसला दिया था जिसमें हमारे पक्ष की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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