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निबन्ध-निचय
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बाद हम इस प्रकरण से सर्वथा लक्ष्य खींचकर अन्य कार्यों में व्यस्त हो गये थे। इतने में पालीताना में श्री सागरानन्दसूरिजी तथा श्री रामचन्द्रसूरिजी के बीच सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई द्वारा तिथिविषयक शास्त्रार्थ करके इस चर्चा का अन्त लाने का निर्णय हुआ। निर्णायक पंच श्री पी० भेल. वैद्य की सेठ द्वारा नियुक्ति हई। वादी की योग्यता से श्री सागरानन्दसूरिजी ने श्री वैद्य को अपना वक्तव्य सुपुर्द किया। निर्णायक पंच ने वादी के वक्तव्य के उत्तर के लिए उसकी कॉपी श्री रामचन्द्रसूरिजी को दी। श्री रामचन्द्रसूरिजी ने उक्त वक्तव्य अहमदाबाद वाले जौहरी बापालाल चूनीलाल तथा श्री भगवानजी कपासी को देकर पहिली ट्रेन से हमारे पास भेजा। दोनों गृहस्थ सुमेरपुर से जाने-आने का इक्का लेकर हमारे पास गुड़ा-बालोतरा (मारवाड़) आये। संध्या समय हो गया था, हम प्रतिक्रमण करने बैठ गये थे। प्रतिक्रमण हो जाने पर वे धर्मशाला में आये, सर्व हकीकत कहकर सागरानन्दसूरिजी का वक्तव्य हमारे हाथ में देकर बोले-'साहिब ! अभी का अभी आप इसे पढ़ लें और मुद्दों पर विचार कर प्रातः समय इनके लिखित उत्तर हमें देने की कृपा करें। हमें बहुत उतावल है, इक्का वाला ठहरेगा नहीं।" हमने कहा-हम दीपक के प्रकाश में पढ़ते नहीं हैं और ऐसे गम्भीर मामलों में पूर्ण विचार किये विना कुछ भी लिखना योग्य नहीं है। इस पर वे कुछ ठण्डे पड़े और परदे को प्रोट में दीपक रखकर सागरजी का वक्तव्य पढ़ सुनाया। हमने कहा- "इसका उत्तर कल चार बजे तक तैयार कर देंगे।" थोड़ा समय बैठकर वे सोने को चले गये।
प्रातःकालीन आवश्यक कार्यों से निपट कर हमने सागरजी महाराज का वक्तव्य ध्यान से पढ़ा और एक एक मुद्दे के उत्तर मन में निश्चित किये। साधन-सामग्री प्रस्तुत करके लिखने की तैयारी करते पहर दिन चढ़ गया। आहार-पानी करके ११॥ बजे ऊपर एकान्त में बैठकर सागरानन्दसूरिजी के पूरे धक्तव्य के उत्तर १४ पृष्ठों में पूरे किये। एक साथ लगभग ४॥ घण्टों तक लिखने से हाथ ने भी उत्तर दे दिया था। शाम को ४॥ बजे दोनों को बुलाकर कहा-जवाबदावा का मसविदा तैयार है ।
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