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________________ निबन्ध-मिचय : २४६ पूजा-पद्धति'' के सम्बन्ध में विद्वान् साधुओं ने बहुतेरा ऊहापोह किया, फिर भी वे उस पुस्तक का एक शब्द भी अप्रामाणिक ठहरा नहीं सके । यह सब जानते हुए भी सम्पादक महाशय "जिन-पूजा-पद्धति" को भयभीत दृष्टि से क्यों देखते हैं, यह बात हमारी समझ में नहीं आती। (१) १७वीं शताब्दी में मूर्तिपूजक जैन-गच्छों में कलहाग्नि भडकाने वाले उपाध्याय श्री धर्मसागरजी ने “सर्वज्ञशतक' नामक ग्रन्थ बनाकर सभी जैन-गच्छों को उत्तेजित किया। इतना ही नहीं परन्तु कई ऐसी शास्त्रविरुद्ध बातें लिखीं कि जिनसे उनके गुरु आचार्य भी बहुत नाराज हुए और उन्हें अपने गच्छ से बाहर उद्घोषित किया। इस कड़ी शिक्षा के परिणामस्वरूप इनकी आँखें खुली और गुरु से माफी ही नहीं मांगी बल्कि "सर्वज्ञ-शतक" का संशोधन किये विना प्रचार न करने की प्रतिज्ञा की। वही "सर्वज्ञ-शतक' ग्रन्थ थोड़े वर्ष के पहले एक साधु द्वारा छपकर प्रकाशित हुया है। जिन जैनशास्त्र-विरुद्ध बातों की प्ररूपणा के अपराध में उसके कर्ता उपाध्याय श्री धर्मसागरजी गच्छ से बाहर हुए थे, वे सभी विरुद्ध प्ररूपणाएँ मुद्रित सर्वज्ञ शतक पुस्तक में आज भी विद्यमान हैं। क्या श्री पारख तथा इनके मुरब्बी ज्ञाता-पुरुष इस विषय में उक्त पुस्तक के प्रकाशक मुनिजी को शासन-संस्था के अनुशासन की सलाह देंगे ? (२) उक्त उपाध्याय श्री धर्मसागरजी के शिष्य श्री पद्मसागरजी ने दिगम्बराचार्य श्री अमितगति की "धर्मपरीक्षा" में से १५०-२०० श्लोक हटाकर उसे अपनी कृति के रूप में व्यवस्थित किया था और उसे उसी रूप में और उसी नाम से कुछ वर्षों पहले श्वेताम्बर सम्प्रदाय की एक पुस्तक प्रकाशक संस्था ने छपवाकर प्रकाशित भी कर दिया है। वास्तव में पद्मसागर की यह "धर्मपरीक्षा" आज भी दिगम्बर परम्परा का ग्रन्थ है। उसमें अनेक दिगम्बरीय मान्यताएँ ज्यों की त्यों विद्यमान हैं, जो श्वेताम्बर परम्परा को मान्य नहीं हैं। क्या श्री पारख तथा इनके शासन-संस्था के अनुशासनवादियों ने इस विषय पर कभी विचार किया है ? (३) आज के यांत्रिक युग में प्रतिवर्ष कितनी ही संस्कृत, प्राकृत तथा लोक-भाषा की पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। पिछले सौ वर्षों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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