________________
सुपासनाहचरिय
श्री लक्ष्मण गरिण विरचित
सपादक तथा छायालेखक : पं० हरगोविन्ददास
यह चरित्र हर्षपुरीय गच्छ के विद्वान् लक्ष्मण गणि ने वि० सं० ११६६ के माघ शुक्ल दशमी गुरुवार के दिन मंडली (मांडल) नगर में रचा है।
चरित्र का गाथा-प्रमाण लगभग सात हजार से अधिक है जिसका अनुष्टुप श्लोक प्रमाण १०१३८ है।
चरित्र की प्राकृत भाषा प्रासादिक तथा प्रांजल है, बीच-बीच प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में चुभने वाले सुभाषित पद्य भी उपलब्ध होते हैं ।
चरित्र में सातवें तीर्थङ्कर श्री सुपार्श्वनाथ का जीवनचरित्र, उनके चतुर्विध संघ के वृतान्त के साथ दिया है, चरित्र के कुल ५०२ पानों में से ८२ पानों में भगवान् का जीवन-चरित्र सम्पूर्ण हुआ है, तब शेष ४२१ पानों में केवल औपदेशिक कथानक हैं। सम्यक्त्व से लेकर बारह व्रत और उनके प्रत्येक अतिचार पर एक एक तथा एकाधिक दृष्टान्त लिखे गए हैं जिनमें अधिकांश ग्रन्थ पूरा हुआ है।
ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थकार ने अपना परिचय देने वाली एक प्रशस्ति भी दी है, जिसके आधार से आपके पूर्व गुरुओं का तथा गच्छ का परिचय इस प्रकार मिलता है-आपने अपने आदि गुरु का नाम 'जयसिंह पूरि' उनके शिष्य का नाम 'अभयदेव सूरि' और उनके शिष्य का नाम हेमचन्द्र सूरि' बताया है। प्रश्नवाहन कुल और हर्षपुरीय-गच्छ के आदि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org