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________________ जयसिंह सूरि विरचित ला-प्रकरण इस माला में मूल ६८ गाथाएं हैं जिनमें १५८ दृष्टान्तों का सूचन किया गया है और इसके विवरणकार स्वयं ग्रन्थकार हैं। विवरण में कुछ विस्तार से, कुछ मध्यम विस्तार से दृष्टान्त वर्णन किये हैं, तब कुछ दृष्टान्तों के नाम मात्र निर्दिष्ट किये हैं। दृष्टान्त सर्व प्राकृत भाषा में हैं, कवल गाथा की व्याख्या संस्कृत भाषा में है। बहुत से दृष्टान्तों का विशेष विवरण जानने के लिए "उपदेशमाला का विवरण" देखने की सूचना की हैं, इससे जाना जाता है कि जयसिंह सूरि ने धर्मदास गणि की उपदेशमाला पर विस्तृत टीका लिखी होगी। ग्रन्थ के अन्त में जम्बू से देववाचक तक स्थविरावली और अपनी गुरुपरम्परा गाथाओं में दी है। ग्रन्थ की समाप्ति सं० ६१५ के भाद्रपद शुक्ला पंचमी के बुधवार को की है। ग्रन्थ में ऐतिहासिक नाम.स्थविरावलियों के अतिरिक्त श्री वंदिकाचाय, सिद्धसेन दिवाकर तथा वाचकमुख्य (उमास्वाति) ये तीन आये हैं। जातक का नामकरण करने के सम्बन्ध में एक स्थान पर बारहवें दिन और अन्यत्र मास के बाद करने का लिखा है। ज्योतिष के सम्बन्ध में निर्देश करते हुए "लग्न' का निर्देश कहीं नहीं किया, किन्तु 'वार' का निर्देश ग्रन्थ की समाप्ति में अवश्य किया है। जज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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