SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निबन्ध-निचय : २३३ तत्कालीन पार्श्वनाथ संतानीय साधु पूर्णरूपेण शिथिलाचारी हो चुके थे और कुगुरुयों में पासत्था के नाम से वे पहले नम्बर में गिने जाते थे, इसलिये पार्श्व संतानीय प्राचार्य ने सुविहित गच्छ की उपसम्पदा धारण कर अपने को शिथिलाचार से मुक्त किया था । " ऊकेश गच्छ चरित्र" फिर पढ़कर निर्णय कर लीजिये । उपकेश गच्छीय पट्टावली में जो इस विषय में विपरीत लिखा है, वह पिछले यतियों की करतूत है और सर्वथा प्रामाणिक है । इस विषय में अब मैं आपसे श्रापको जंचे तो अपने विचारों को जनता के भ्रमनिवारण के लिए जो किया जायगा । Jain Education International ज्यादा लिखा-पढ़ी नहीं करूँगा, यदि परिष्कृत कर प्रकट कीजिये अन्यथा उचित होगा लेख के रूप में प्रतीकार For Private & Personal Use Only भवदीय : कल्याणविजय www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy