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निबन्ध-निधष
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सरासर भूल होगी। इन्होंने संघभेद करके शासन की हानि की है यह बात मैं मानता हूँ, मतप्रवर्तक अथवा नूतन गच्छ प्रवर्तकों के नाते आप इनके लिये कुछ भी लिखें हमारा विरोध नहीं, बाकी इनको ‘क्रियोद्धारक' मानकर कुछ भी लिखना वास्तविकता से दूर होगा । “ऊकेश गच्छ चरित्र" का वह प्रसंग याद होगा जहां कि ऊकेश गच्छ के एक प्रसिद्ध आचार्य के"चन्द्रकुल प्रवर्तक श्री चन्द्रसूरिजी" के निकट क्रियोद्धार करके उपसंपदा ग्रहण करने का उल्लेख किया गया है। तेरहवीं शती में "श्री देवभद्र गरिण'' तथा "श्री जगच्चन्द्रमूरि" और उन्हीं की परम्परा में श्री आनन्दविमलसूरिजी" आदि प्रसिद्ध क्रियोद्धारक हो गये हैं, पर आप यह नहीं बता सकेंगे कि इन्होंने कोई मत पंथ खड़ा किया था, अथवा संघभेद किया था।
यदि उपर्युक्त क्रियोद्धारवों पर आपका कटाक्ष नहीं है तो आप जो कुछ लिखें (मत प्रवर्तक) अथवा (भूतन गच्छ सर्जक) इस हेडिंग के नीचे लिखें और उसमें "क्रियोद्धारक शब्द का प्रयोग करने की गल्ती न करें।
भवदीय :
कल्याणविजय मु० हरजी, पो० गुढ़ा बालोतरा (मारवाड़) ता० २७-७-४१
विनयादि गुणविभूषित मुनिराज श्री ज्ञानसुन्दरजी गुणसुन्दरजी,
फलोदी-मारवाड़
अनुवन्दना सुख शाता के साथ निवेदन कि पत्र प्रापका मिला समाचार जाने।
आप उपाध्यायजी के जिन उल्लेखों के आधार पर क्रियोद्धारकों का खण्डन करना चाहते हैं, वास्तव में वे उल्लेख क्रियोद्धारकों के लिए नहीं पर सत्काल निकले हुए स्थानकवासी वेषधारियों, ढुंढकों तथा पासत्थों के लिये हैं :
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