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पं० कल्याणविजय गणि
क्या क्रियोद्धारकों से शासन की हानि होती है ?
ता० १ तथा ८ वीं जून सन् १९४१ के 'जैन' पत्र में मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी का एक लेख छपा है जिसका शीर्षक "क्या उपाध्यायजी श्री यशोविजयजी महाराज ने क्रिया उद्धार किया था" यह है । इस लेख में मुनिजी ने अपनी समझ का जो परिचय दिया है वह अति खेदजनक है ।
उपाध्याय श्री यशोविजयजी ने क्रियोद्धार किया था या नहीं, इस प्रश्न को एक तरफ छोड़कर पहले हम मुनिजी की उन दलीलों की जाँच करेंगे जो उन्होंने उपाध्यायजी के क्रियोद्धारक न होने के समर्थन में दी हैं।
आप कहते हैं-'क्रिया उद्धारकों से होने वाली शासन की हानि से भी आप अपरिचित नहीं थे। क्रिया उद्धारक समाज की संगठित शक्ति को अनेक भागों में विभक्त कर शासन को क्षति पहुंचाते हैं यह भी आप से प्रच्छन्न नहीं था।"
___ क्या ही अच्छा होता, अगर मुनिजी पहले क्रिया उद्धार का अर्थ समझ लेते और फिर इस विषय पर लिखने को कलम उठाते । मुनिजी की उक्त पंक्तियों को पढ़ने से तो यही ज्ञात होता है कि क्रियोद्धारकों को आप मत-पन्थवादी समझ बैठे हैं, जो निराधार ही नहीं शास्त्रविरुद्ध भी है। क्रिया उद्धार का अर्थ मतवाद नहीं शिथिलाचार के नीचे दबी हुई चारित्रावार की क्रियानों को ऊपर उठाना है।।
शास्त्र में क्रियोद्धारक दो प्रकार के बताये हैं
(१) उपसम्पन्नक और (२) शिथिलाचारवर्जक ।
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