________________
निवरच-निचय
: २१७
प्रर्थात् - "प्रतिष्ठा विधि को यथार्थ रूप में जाने विना अभिमान और लोभ के वश होकर जो "जिनप्रतिमा को स्थापित करता है, वह संसार - समुद्र में गिरता है ।"
उपसंहार ::
प्रतिष्ठाचार्य और प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में कतिपय ज्ञातव्य बातों का ऊपर सार मात्र दिया है । आशा है कि प्रतिष्ठा करने और कराने वाले इस लेख पर से कुछ बोध लेंगे ।
जैन विद्याशाला,
अहमदाबाद ता० १६-८-५५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
कल्याणविजय गरी
www.jainelibrary.org