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निबन्ध-निचय
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स्पष्ट रूप से समझ में मा जाती है। इस प्रकार की उक्त मूर्तियां न तो कच्छवाली कही जा सकती हैं. और न नग्न ही, किन्तु जिस प्रकार श्वेताम्बर जैन साधु आजकल चोलपट्टा पहिन कर ऊपर कन्दोरा बांधते हैं, ठीक उसी प्रकार ये मूर्तियां भी कमर से जंघा तक कपड़ा पहिनी और ऊपर कन्दोरा बंधी हुई प्रतीत होती हैं। प्रस्तुत मूर्तियों की सबसे पहली यह विशिष्टता है और इससे हमारे समाज में चिर प्रचलित एक दन्तकथा निराधार लिखी हुई साबित होती है।
____ कहा जाता है और अनेक ग्रन्थकार अपने ग्रन्थों में लिख भी चुके हैं कि पूर्वकाल में जैन मूर्तियां न तो नग्न होती थीं और न वस्त्रावृत किन्तु वे उक्त दोनों प्राकारों से विलक्षण आकार वाली होती थीं, जिन्हें श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों वाले मानते थे। परन्तु बप्पभट्रि प्राचार्य के समय में (विक्रम की नवमी शताब्दी में) एक बार गिरनार तीर्थ के स्वामित्व हक के बारे में श्वेताम्बर-दिगम्बरों में झगड़ा हुआ। झगड़े का फैसला बप्पभट्टि प्राचार्य के प्रभाव से श्वेताम्बरों के हक में होकर उक्त तीर्थ श्वेताम्बर सम्प्रदाय का प्रमाणित हुआ, परन्तु इस झगड़े से दोनों सम्प्रदाय वाले चौकन्ने हो गये और भविष्य में फिर कभी वांधा न उठे इस वास्ते एक सम्प्रदाय वालों ने अपनी मूर्तियां कच्छ-कन्दोरे वाली बनवाने की प्रथा प्रचलित की और दूसरों ने बिल्कुल नग्नाकार वाली, परन्तु प्रस्तुत मूर्तियों के आकार प्रकार से उक्त दन्तकथा केवल निराधार प्रमाणित होती है। जिस समय बप्पभटि का जन्म भी नहीं हुआ था उस समय भी जब इस प्रकार की वस्त्रधारिणी जैन मूर्तियां बनती थीं तब यह कैसे माना जाय कि बप्पभट्टि के समय से ही सवस्त्र जिनमूर्तियां बनने लगी।'
१. मथुरा के प्राचीन खण्डहरों में से विक्रम की छठवीं सदी के लगभग समय की कुछ जैन मूर्तियां निकली हैं जो आधुनिक दिगम्बर मूर्तियों की तरह बिल्कुल नग्नाकार हैं। इससे भी उक्त दन्तकथा कि नग्नमूर्तियां बप्पभटि के समय से बनने लगी, निराधार प्रमाणित होती है। सच बात तो यह है कि सम्प्रदायों की प्रतिष्ठा के समय से ही उनकी अभिमत मूर्तियां भी अपनी २ मान्यतानुसार बनने लगी थीं। परन्तु समय समय पर होने वाली शिल्पशास्त्र की उन्नति अवनति के कारण कालान्तरों में उनका मूल रूप कई अंशों में परिवर्तित हो गया और मूर्तियां वर्तमान स्वरूप को प्राप्त हो गई।
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