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१९८ :
निबन्ध-निश्चय
मूर्तियां अच्छी हालत में हैं परन्तु ध्यान से देखने से इनकी भुजाओं में श्वेत धातु के टांके स्पष्ट दिखाई देते हैं। इससे ज्ञात होता है कि इनकी भुजायें प्रनार्य लोगों ने तोड़ दी होंगी अथवा तोडने के लिए इन पर शस्त्र प्रहार किये होंगे, जिससे भुजाओं में गहरी चोटें लगी हैं, जो बाद में चांदी से भर दी गई मालूम होती हैं।
दो मूर्तियों में से उक्त बायें हाथ तरफ की मूर्ति के पादपीठ पर ५ पंक्ति का एक संस्कृत भाषा में लेख है जो विवेचनपूर्वक आगे दिया जायगा।
४. मूर्तियों की विशिष्टता : प्रस्तावित मूर्तियों की विशिष्टता भी देखने योग्य है । गुप्तकालीन शिल्पकला के उत्कृष्ट नमूने होने के कारण तो ये दर्शनीय हैं ही, परन्तु अन्य भी अनेक विशिष्टतायें इनमें संनिहित हैं ।
१. आज तक जितनी कायोत्सर्गस्थित प्राचीन जिनमूर्तियां हमने देखी हैं उन सब के कटिभाग में तीन पांच अथवा सात सर का कच्छ बंधा हुआ और उनके अंचल सामने गुह्यभाग से लेकर जंघामध्य तक लम्बे देखे गये हैं। परन्तु इन मूर्तियों के विषय में यह बात नहीं है। इनके कटिप्रदेश में कच्छ या लंगोट नहीं किन्तु कंदोरा सा बंधा हुआ दिखाई देता है, जिसका गठबन्धन सामने ही मूर्ति के दाहिने हाथ की तरफ किया हुआ है
और वहीं उसके छोर लटकते हुए दिखलाये हैं। परन्तु रस्सी का एक छोर सामने की तरफ भी नीचे लटकता हुआ दिखाया गया है, जो कपड़े के एक अंचल से बंधा हा सा ज्ञात होता है। इससे मूर्ति के दाहिने भाग में तो कंदोरे की गांठ मात्र ही दीखती है, परन्तु बायीं तरफ जघन भाग से सटा हुआ कपड़ा दिखाई दे रहा है जो सामने के बायें अर्ध भाग को ढंकता हुआ घुटनों के भी नीचे पतली जांघों तक चला गया है। बायें भाग में कपड़े पर बल पड़े होने से वह स्पष्ट दिखाई देता है। दाहिने भाग में वैसा न होने से कपड़े का चिह्न स्पष्टतया प्रतीत नहीं होता, परन्तु दोनों जांघों के निचले भागों में टखनों के कुछ ही ऊपर कपड़े की किनारी स्पष्ट दिखाई देती है, जिससे "मूर्तियों का कमर के नीचे का भाग वस्त्रावत है" यह बात
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