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________________ निबन्ध-निचय दो गई थीं परन्तु बाद में वहां के एक श्रावक ने गांव के पंचों की राय लिये वगैर ही पालनपुर के एक पुरातत्त्व अन्वेषक गृहस्थ को वे दे दी थीं, परन्तु साल भर के बाद जब गांव के पंचों को इस बात का पता लगा तो देने वाले को मूर्तियां वापिस लाने के लिए तंग किया और ले जाने वाले गृहस्थ से भी मूर्तियां वापिस दे देने के लिए लिखा-पढ़ी की। आखिर वे तीनों मूर्तियां फिर पिण्डवाड़े आ गई, जो अभी पिछली देहरी के कपिलामण्डप के दोनों खत्तकों में रक्खी हुई हैं। तीन त्रितीथियां भी उसी देहरी के मण्डप में भीतर जाते दाहिने हाथ की तरफ विराजमान हैं। ये परिकर सहित सवा फूट के लगभग ऊँचाई में होंगी। ये मूर्तियां अभी तक अच्छी हालत में हैं। त्रितीथियों के मूलनायक की प्राचीनता उनके लम्बगोल और सुनहरे मुख से हो झलकती है। बाकी उन पर न लेख है, न वस्त्र या नग्नता के ही चिह्न। परन्तु इन त्रितीर्थियों में जो दो दो कायोत्सर्गस्थित मूर्तियां हैं उनकी प्राकृति और कटि भाग के नीचे स्पष्ट दिखने वाला वस्त्रावरण इनकी प्राचीनता का खुला साक्ष्य दे रहा है। इन त्रितीथियों में अर्वाचीन त्रितीथियों से दो एक बातें भिन्न प्रकार की देखी गई। अर्वाचीन त्रितीथियों में दोनों कार्योगिक मूर्तियां एक ही तीर्थकर की होतो हैं और उनमें यक्ष-याक्षिणी भी मूलनायक की ही होती हैं परन्तु इन त्रितीथियों के सम्बन्ध में यह बात नहीं पाई गई। इनमें मूल नायक तो अन्य तीर्थङ्कर हैं ही, परन्तु दो कायोत्सर्गिक भी भिन्न-भिन्न तीर्थङ्कर हैं और केवल मूलनायक के ही नहीं सब के पास अपने-अपने अधिष्ठायकों की मूर्तियां दृष्टिगोचर होती हैं। दो अकेली कायोत्सर्गिक मूर्तियां मूलमन्दिर के गूढ़ मण्डप में दाहिने और बायें भाग में सामने ही खड़ी हैं। दोनों मूर्तियों के नीचे धातुमय पादपीठ हैं, जिनसे मूर्तियां काफी ऊँची दीखती हैं। पादपीठ सहित इन कायोत्सर्गिकों की ऊँचाई ६ फुट से अधिक होगी। सामान्यतया दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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