________________
निबन्ध-निचय
: १६३
पन्द्रहवीं शताब्दी में "निगमगच्छ'' के प्रादुर्भावक आचार्य इन्द्रनन्दी के बनाये हुए "निगमों" में एक निगम "सम्मेत शिखर" के वर्णन में लिखा है । जिसमें इस तीर्थ का बहुत ही अद्भुत वर्णन किया है। आज से ४४ वर्ष पहले ये निगम कोडाय (कच्छ) के भण्डार में से मंगवाकर हमने पढे थे।
ऊपर लिखे सूत्रोक्त दश प्राचीन तीर्थों के अतिरिक्त वैभारगिरि, विपुलाचल, कोशला की जीवित-स्वामि-प्रतिमा, अवन्ति की जीवितस्वामिप्रतिमा आदि अनेक प्राचीन पवित्र तीर्थों के उल्लेख सूत्रों के भाष्य आदि में मिलते हैं, परन्तु इन सबका एक निबन्ध में निरूपण करना अशक्य जानकर उन्हें छोड़ देते हैं।
प्राचीन जैन तीर्थों के सम्बन्ध में बहत कूछ लिखा जा सकता है परन्तु एक निबन्ध में इससे अधिक लिखना पाठकगण के लिये रुचिकर न होगा, यह समझकर तीर्थविषयक लेख यहां पूरा किया जाता है । प्राशा है कि पाठकगण लेखगत त्रुटियों पर नजर न रखकर इसकी ज्ञातव्य बातों पर लक्ष्य देंगे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org