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________________ १९० : निबन्ध-निचय कहा-भविष्य में समय कनिष्ठ आने वाला है, कालानुभाव से राजादि शासक लोभग्रस्त बनेंगे और इस सुवर्णमय स्तूप को नुकसान पहुँचायेंगे। अतः स्तूप भीतर को ईटों के परदे से ढांक दिया जाय । भीतर की मूर्तियों की पूजा मैं अथवा मेरे बाद जो नयी कुबेरा उत्पन्न होगी वह करेगी। संघ इष्टकामय स्तूप में भगवान् पार्श्वनाथ की प्रस्तरमयी मूर्ति प्रतिष्ठित करके पूजा किया करे । देवी की बात भविष्य में लाभदायक जानकर संघ ने मान्य की और देवी ने विचारित योजनानुसार मूल स्तूप को ईटों के स्तूप में ढांप दिया । वीर-निर्वाण की चौदहवीं शताब्दी में प्राचार्य बप्पट्टि हुए । उन्होंने भी इस तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया, पार्श्वनाथ को पूजा करवाई, नित्यपूजा होती रहे, इसके लिए व्यवस्था करवाई । ___इष्टकामय स्तूप पुराना हो जाने से उसमें से ईटें निकलने लगी थीं, इसलिए संघ ने पुराने स्तूप को हटाकर नया पाषाणमय स्तूप बनवाने का निर्णय किया, परन्तु कुबेरा ने स्वप्न में कहा-इष्टकामय स्तूप को अपने स्थान से न हटाइये, इसको मजबूत करना हो तो ऊपर पत्थर का खोल चढ़वा दो । संघ ने वैसा ही किया । आज भी देवनिर्मित स्तूप को अदृश्य रूप से देव पूजते हैं तथा इसकी रक्षा करते हैं । हजारों प्रतिमाओं से युक्त देवालयों, रहने के स्थानों, सुन्दर गन्धकुटियों तथा चेलनिका, अम्बा, अनेक क्षेत्रपाल आदि के निवासों से यह स्तूप सुशोभित है । 'पूर्वोक्त बप्पट्टि सूरिजी ने, जो कि ग्वालियर के राजा ग्राम के धर्मगुरु थे, मथुरा में वि० सं० ८२६ में भावान् महावीर का बिम्ब प्रतिष्ठित किया ।' मथुरा के देवनिर्मित स्तूप की उत्पत्ति का निरूपण शास्त्रीय प्रतीकों तथा मथुराकल्प के आधार से ऊपर दिया गया है। कल्पोक्त वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है, परन्तु एक बात तो निश्चित है कि यह स्तूप है अतिप्राचीन और भारत में विदेशियों के आने के समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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