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निबन्ध-निचय
लड़ते हो। अपने-अपने इष्ट देवों को वस्त्र-पटों पर चित्रित करवाकर निज निज मण्डली के साथ ठहरो, स्तूप-स्थित देव जिसका होगा, उसी का चित्रपट रहेगा। शेष व्यक्तियों के पटस्थित देव भाग जायेंगे। जैन संघ ने भी सुपादर्वनाथ का चित्रपट बनवाया, बाद में अपनी अपनी मण्डलियों के साथ चित्रित चित्रपटों की पूजा करके सब धार्मिक सम्प्रदाय वाले अपनेअपने पट सामने रखकर उनकी भक्ति करने लगे।
नवम दिन की रात्रि का समय था। सभी सम्प्रदायों के भक्तजन अपने अपने ध्येय देव के गुणगान कर रहे थे। बराबर अर्द्धरात्रि व्यतीत हुई तब प्रचण्ड पवन प्रारम्भ हुअा। पवन से तृण रेती उड़े इसमें तो बड़ी बात नहीं थी, परन्तु उसकी प्रचण्डता यहां तक बढ़ चली कि उसमें पत्थर-कंकर तक उड़ने लगे। तब लोगों का ध्यान टूटा, वे प्राण बचाने की चिंता से वहां से भागे। लोगों ने अपने अपने सामने जो देव-पूजा पट रखे थे, वे लगभग सब के सब प्रचण्ड पवन में विलीन हो गये। केवल सुपार्श्वनाथ का पट्ट वहां रह गया। हवा का बवण्डर शान्त हुआ, लोग फिर एकत्रित हुए और सुपार्श्वनाथ का पट्ट देखकर बोले-ये अरिहंत देव हैं और यह स्तूप भी इन्हीं देव की मूर्तियों से अलंकृत है। लोग उस पट्ट को लेकर सारे मथुरा नगर में घूमे और तब से “पट्ट-यात्रा' प्रवृत्त हुई।
इस प्रकार धर्मधोष तथा धर्मरुचि मुनि मेरुपर्वताकार देवनिर्मित स्तप में देववन्दन कर नया तीर्थ प्रकाश में लाकर, जैन संघ को आनंदित कर मथुरा से विहार कर गए और क्रमशः कर्म क्षय कर संसार से मुक्त हुए।
"कुबेरा देवी स्तूप की तब तक रक्षा करती रही, जब कि पार्श्वनाथ का शासन प्रचलित हुग्रा ।"
'एक समय भगवान् पार्श्वनाथ विहार कर क्रम से मथुरा पधारे । उन्होंने धर्मोपदेश करते हुए भावी दुष्षमाकाल के भावों का निरूपण किया। पार्श्वनाथ के वहां से विहार करने के बाद कुबेरा ने संघ को बुलाकर
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