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निबन्ध-मिचय
वअस्वामी ने अपने विद्याबल से आहार मंगवाकर साधुओं को दिया और कहा-बारह वर्ष तक इसी प्रकार विद्या-पिण्ड से शरीर-निर्वाह करना होगा। इस प्रकार जीवननिर्वाह करने में लाभ मानते हो तो वैसा करें अन्यथा अनशन द्वारा जीवन का अन्त कर दें। श्रमणों ने एक मत से अपनी राय दी कि इस प्रकार दूषित आहार द्वारा जीवननिर्वाह करने से तो अनशन से देह त्याग करना ही अच्छा है। इस पर विचार करके प्रार्य वज्रस्वामी ने अपने एक शिष्य वज्रसेन मुनि को थोड़े से साधुनों के साथ कोंकण प्रदेश में विहार करने की आज्ञा दी और कहा–'जिस दिन तुमको एक लक्ष सुवर्णों से निष्पन्न भोजन मिले तब जानना कि दुर्भिक्ष का अन्तिम दिन है। उसके दूसरे ही दिन अन्नसंकट हल्का होने लगेगा। अपने गुरुदेव की आज्ञा सिर चढ़ाकर वज्रसेन मुनि ने कोंकण देश की तरफ विहार किया और वज्रस्वामी ने पांच सौ मुनियों के साथ रथावर्त पर्वत पर जाकर अनशन धारण किया।
- वज्रस्वामी के उपर्युक्त वर्णन से जाना जा सकता है कि वयसेन के विहार करने पर तुरन्त आप वहां से अनशन के लिए रवाना हो गये हैं भौर निकट प्रदेश में ही रहे हुए रथावर्त पर्वत पर अनशन किया है। प्राचीन विदिशा नगरी (आज का भिल्सा) के समीप पूर्वकाल में "कुंजरावर्त" तथा "रथावर्त" नामक दो पहाड़ियां थीं। वज्रस्वामी ने इसी :"रथावर्त" नामक पर्वत पर अनशन किया होगा और यही "रथावर्त" पर्वत जैनों का प्राचीन तीर्थ होगा, ऐसा हमारा मानना है ।
___ (७) चमरोत्पात : भगवान् महावीर छद्मस्थावस्था के बारहवें वर्ष में वैशाली की तरफ विहार करते हुए सुंसुमारपुर नामक स्थान पर-स्थान के निकटवर्ती उपवन में अशोक वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ थे। तब चमरेन्द्र नामक असुरेन्द्र वहां प्राया और महावीर की शरण लेकर स्वर्ग के इन्द्र शक्र पर चढ़ाई कर गया। सुधर्मा सभा के द्वार तक पहुंच कर शक्र को धमकाने लगा। कक्रेन्द्र ने भी चमरेन्द्र को मार हटाने के लिए अपना वज्रायुध उसकी तरफ
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