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निबन्ध-मिचय
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(सूर्यमुखी), निविषी, मयूरशिखा, शल्या, विशल्यादि अनेक महौषधियां यहां मिला करती हैं ।'
'अहिच्छत्रा में विष्णु, शिव, ब्रह्मा, चण्डिकादि के मन्दिर तथा ब्रह्मकुण्ड आदि अनेक लौकिक तीर्थ स्थान भी बने हुए हैं।' 'यह नगरी सुगृहीतनामधेय : कण्व ऋषि" की जन्मभूमि मानी जाती है।'
उपर्युक्त अहिच्छत्रा तीर्थस्थान वर्तमान में कुरु देश के किसी भूमिभाग में खण्डहरों के रूप में भी विद्यमान है या नहीं इसका विद्वानों को पता लगाना चाहिए।
(६) रथावर्त (पर्वत) तीर्थ : प्राचीन जैन तीर्थों में "रथावर्त पर्वत" को नियुक्तिकार ने षष्ठ नम्बर में रखा है। यह पर्वत प्राचारांग के टीकाकार शीलाङ्क सूरि के कथनानुसार अन्तिम दश पूर्वधर आर्य वज्र स्वामी के स्वर्गवास का स्थान है। पिछले कतिपय लेखकों का भी मन्तव्य है कि वज्र स्वामी के अनशनकाल में इन्द्र ने प्रोकर इस पर्वत की रथ में बैठकर प्रदक्षिणा की थी जिससे इसका नाम "रथावर्त" पड़ा था। परन्तु यह मन्तव्य हमारी राय में प्रामाणिक नहीं है, क्योंकि आर्य वज्र स्वामी के अनशन का समय विक्रमीय द्वितीय शताब्दी का पूर्वार्ध है, जब कि प्राचारांग नियुक्तिकार श्रुतधर आर्य रक्षित आर्य वज्र के समकालीन कुछ ही परवर्ती हो गए हैं। इससे पर्वत का रथावर्त, यह नामकरण भी संगत हो जाता है ।
नियुक्तिकार को भद्रबाहु मानने से पर्वत का नाम रथावर्त नहीं बैठता। रथावर्त पर्वत किस प्रदेश में था, इस बात का विचार करते समय हमें आर्य वज्रस्वामी के अन्तिम समय के विहारक्षेत्र पर विचार करना होगा। आर्य वज्र स्वामी अपनी स्थविर अवस्था में सपरिवार मालवा देश में विचरते थे, ऐसा जैन ग्रन्थों के उल्लेखों से जाना जाता है। उस समय मध्य भारत में बड़ा भारी द्वादश वार्षिक दुर्भिक्ष आरम्भ हो चुका था। साधुनों को भिक्षा मिलना कठिन हो गया था। एक दिन तो स्थविर
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