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________________ १७८ : निबन्ध-निचय 'यहां एक सिद्धरस कूपिका भी दृष्टिगोचर होती है जिसका मुख पाषाण शिला से ढँका हुआ है । इस मुख को खोलने के लिए एक म्लेच्छ राजा ने बहुत कोशिश की, यहां तक कि रखी हुई शिला पर बहुत तीव्र आग जलाकर उसे तोड़ना चाहा, परन्तु वह अपने सभी प्रयत्नों में निष्फल रहा ।' 'पार्श्वनाथ की यात्रा करने आये हुए यात्रीगरण अब भी जब भगवान् का " स्नपन महोत्सव" करते हैं; उस समय कमठ दैत्य प्रचण्ड - पवन और बदलों द्वारा यहां पर दुर्दिन कर देता है ।' 'मूल चैत्य से थोड़ी दूरी पर सिद्धक्षेत्र में धरणेन्द्र - पद्मावती सेवित पार्श्वनाथ का मन्दिर बना हुआ है ।' 'नगर के दुर्ग के समीप नेमिनाथ की मूर्ति से सुशोभित सिद्ध-बुद्ध नामक दो बालक रूपकों से समन्वित, हाथ में ग्राम्रफलों की डाली लिए सिंह पर आरूढ़ अम्बा देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित है ।' 'यहां उत्तरा नामक एक निर्मल जल से भरी बावड़ी है, जिसके जल में नहाने तथा उसकी मिट्टी का लेप करने से कोढ़ियों के कोढ़ रोग शान्त हो जाते हैं ।' 'यहां रहे हुए धन्वन्तरी नामक कुंए की पीली मिट्टी से ग्राम्नाय - वेदियों के आदेशानुसार प्रयोग करने से सोना बनता है ।' 'यहां ब्रह्मकुण्ड के किनारे मण्डूक- पर्णी ब्राह्मी के पत्तों का चूर्ण एकवर्णी गाय के दूध के साथ सेवन करने से मनुष्य की बुद्धि और नीरोगता बढ़ती है और उसका स्वर गन्धर्व का सा मधुर बन जाता है ।' यही नहीं, यहां के 'बहुधा अहिच्छत्रा के उपवनों में सभी वृक्षों पर बन्दाक उगे हुए मिलते हैं जो अमुक-अमुक कार्य साधक होते हैं। उपवनों में जयन्ती, नागदमनी; सहदेवी, अपराजिता, नकुली, सकुली, सर्पाक्षी, सुवर्णशिला, मोहनी, Jain Education International For Private & Personal Use Only लक्ष्मणा, त्रिपर्णी, श्यामा, रविभक्ता www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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