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निबन्ध-निचय
एक समय श्रमण भगवान् महावीर दशार्ण देश में विचरते हुए अपने श्रमण-संघ के साथ दशार्णपुर के समीपवर्ती एक उपवन में पधारे। राजा दशार्णभद्र को उद्यानपालक ने भगवान् के पधारने की बधाई दी।
भगवन्त का आगमन जानकर राजा बहुत ही हर्षित हुआ। उसने सोचा कल ऐसी तैय्यारी के साथ भगवन्त को वन्दन करने जाऊँगा और ऐसे ठाट से वन्दन करूँगा जैसे ठाट से न पहले किसी ने किया होगा, न भविष्य में करेगा” । उसने सारे नगर में सूचित करवा दिया कि "कल अमुक समय में राजा अपने सर्व परिवार के साथ भगवान् महावीर को वन्दन करने जायगा और नागरिकगण को भी उसका अनुगमन करना होगा।
राजकर्मचारीगण उसी समय से नगर की सजावट; चतुरंगिनी सेना के सज्ज करने तथा अन्यान्य समयोचित तैयारियाँ करने के कामों में जुट गये। नागरिक जन भी अपने अपने घर, हाट सजाने, रथ-यान पालकियों को सज्ज करने लगे।
दूसरे दिन प्रयाण का समय पाने के पहले ही सारा नगर ध्वजारों, तोरणों, पुष्पमालाओं से सुशोभित था। मुख्य मार्गों में जल छिड़काव कर फूल बिखेरे गये थे। राजा दशार्णभद्र , उसका सम्पूर्ण अन्तःपुर और दास-दासी गण अपने योग्य यानों, वाहनों से भगवान् के वन्दनार्थ रवाना हुए। उनके पीछे नागरिक भी रथों, पालकियों आदि में बैठकर राजकुटुम्ब के पीछे उमड़ पड़े ।
__महावीर की धर्मसभा की तरफ जाते हुए राजा के मन में सगर्व हर्ष था। वह अपने को भगवान् महावीर का सर्वोच्च शक्तिशाली भक्त मानता था। ठीक इसी समय स्वर्ग के इन्द्र ने भगवान् महावीर के विहार क्षेत्र को लक्ष्य करके अवधि ज्ञान का उपयोग किया और देखा कि भगवान् दशार्णकूट पहाड़ी के निकटस्थ उद्यान में विराजमान हैं, राजा दशार्णभद्र अद्वितीय सजधज के साथ उन्हें वन्दन करने जा रहा है। इन्द्र ने भी इस
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