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निबन्ध-निचय
शत्रुंजयावतारेऽत्र वस्तुपालेन कारिते I ऋषभः पुण्डरीकोऽष्टापदो नन्दीश्वरस्तथा ॥ १२ ॥ सियाना हेमवर्णा, सिद्ध-बुद्धसुतान्विता । कम्राम्रलुम्बिभृत्-पाणि-रत्राम्बा संघविघ्नहृत् ||१३|| " ( वि० ती० क० पृ० ७ )
'जहां भगवान् के तीन कल्याणक होने के कारण से ही मन्त्रीश्वर वस्तुपाल ने सज्जनों के हृदय को चमत्कृत करने वाला तीन कल्याणक का मन्दिर बनवाया । जिन प्रतिमाओं से भरे इस इन्द्रमण्डप में रहे हुए भगवान् नेमिनाथ का स्नपन करने वाले पुरुष इन्द्र की शोभा पाते हैं । इस पर्वत की चोटी को - " गजेन्द्रपद" नामक जो अमृत के से जल से भरा और स्नपनीय जिन - प्रतिमाओं का स्नपन करने से समर्थ है- भूषित कर रहा है । यहां वस्तुपाल द्वारा कारित शत्रुञ्जयावतार विहार में भगवान् ऋषभदेव, गणधर पुण्डरीक स्वामी, अष्टापद चैत्य तथा नन्दीश्वर चैत्य यात्रिकों के लिए दर्शनीय चीज हैं । इस पर्वत पर सुवर्ण की सी कान्तिवाली सिंहवाहन पर आरूढ़ सिद्ध-बुद्ध नामक अपने पूर्व भविक दो पुत्रों को साथ लिये कमनीय आम की लुम्ब जिसके हाथ में है ऐसी अम्बादेवी यहां रही हुई संघ के विघ्नों का विनाश करती है ।
उज्जयन्त तीर्थ सम्बन्धी उक्त प्रकार के पौराणिक तथा ऐतिहासिक वृत्तान्त बहुतेरे मिलते हैं, परन्तु उनके विवेचन का यह योग्य स्थल नहीं । हम इसका विवेचन यहीं समाप्त करते हैं ।
(३) गजाग्रपद तीर्थ
गजाग्रपद भी प्राचारांग निर्युक्ति-निर्दिष्ट तीर्थों में से एक हैं, परन्तु वर्तमान काल में यह व्यवच्छिन्न हो चुका है । इसकी अवस्थिति सूत्रों में दशापुर नगर के समीपवर्ती दशार्णकूट पर्वत पर बताई है । आवश्यकचूरिंग में भी इस तीर्थ को "दशार्ण देश" के मुख्य नगर " दशार्णपुर" के समीपवर्ती पहाड़ी तीर्थ लिखा है और इसकी उत्पत्ति का वर्णन भी दिया है, जिसका संक्षेप सार नीचे दिया जाता है
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