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________________ १६० : निबन्ध-निचय कलुषता जानकर अम्बिका देवी ने उस रत्नमयी प्रतिमा की झल-हलती कान्ति को ढांक दिया। ( वि० ती० क० पृ० ६ ) इसी कल्प में इस तीर्थ सम्बन्धी अन्य भी ऐतिहासिक उल्लेख मिलते हैं, जो नीचे दिये जाते हैं "पुवि गुज्जर जयसिंहदेवेणं खंगाररायं हरिणता सज्जणो दंडा हिवो ठवियो । तेण अ अहिणवं नेमिजिरिंणदभवणं एगारस-मय-पंचासीए (११८५) विकमरायवच्छरे काराविरं । चोलुक्कचक्किसिरिकुमारपालनरिदंसंठविन सोरट्ठदंडाहिवेरण सिरिसिरिमालकुलुब्भवेण बारस सयवीसे (१२२०) विक्कम संवच्छरे पज्जा काराविमा। तब्भवेण धवलेण अंतराले पवा भराविया । पज्जाए चडतेहिं जणेहिं दाहिणदिसाए लक्खारामो दीसइ ।" (वि० ती० क० पृ० ६) अर्थात्-पूर्वकाल में गुर्जर भूमिपति चौलुक्य राजा जयसिंह देव ने जुनागढ़ के राजा रा खेङ्गार को मारकर दण्डाधिपति सज्जन को वहां का शासक नियुक्त किया। सज्जन ने विक्रम संवत् ११८५ में भगवान् नेमिनाथ का नया भवन बनवाया। बाद में मालवाभूमिभूषण साधु भावड़ ने उस पर सुवर्णमय पामलसारकर करवाया। चौलुक्यचक्रवर्ती श्रीकुमारपाल देव द्वारा नियुक्त श्रीश्रीमाल कुलोत्पन्न सौराष्ट्र दण्डपति ने विक्रम संवत् १२२० में उज्जयन्त पर्वत पर चढ़ने का सोपानमय मार्ग करवाया। उसके पुत्र धवल ने सोपान-मार्ग में प्रपा बनवाई। इस पद्या मार्ग से ऊपर चढ़ने वाले यात्रिक जनों को दक्षिण दिशा में लक्षाराम नामक उद्यान दीखता है। इन कल्पों के अतिरिक्त उउ जयन्त तीर्थ के साथ सम्बन्ध रखने वाले अनेक स्तुति-स्तोत्र भी भिन्न भिन्न कवियों के बनाये हुए जैन ज्ञान भण्डारों में उपलब्ध होते हैं, जिनमें से थोड़े से श्लोक नीचे उद्धृत करके इस तीर्थ का वर्णन समाप्त करेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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