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________________ निबन्ध-निचय : १६३ प्रचलित हुआ। "चिताकुण्डों में अग्नि-चयन करने के कारण तीन कुण्डों में अग्नि स्थापना करने का प्रचार चला और वैसा करने वाले "माहिताग्नि" कहलाये। उपर्युक्त सूत्रोक्त वर्णन के अतिरिक्त भी अष्टापद तीर्थ से सम्बन्ध रखने वाले अनेक वृत्तान्त सूत्रों, चरित्रों तथा प्रकीर्णक जैन-ग्रन्थों में मिलते हैं, परन्तु उन सब के वर्णनों द्वारा लेख को बढ़ाना नहीं चाहते । (२) उज्जयन्त? : "उज्जयन्त" यह गिरनार पर्वत का प्राचीन नाम है। इसका दूसरा प्राचीन नाम "रैवतक" पर्वत भी है। "गिरनार" यह इसका तीसरा पौराणिक नाम है जो कल्पों, कथानों आदि में मिलता है। उज्जयन्त तीर्थ का नामनिर्देश प्राचारांग नियुक्ति में किया गया है जो ऊपर बता पाए हैं। इसके अतिरिक्त कल्प-सूत्र, दशाश्रुत-स्कन्ध, आवश्यक सूत्र आदि में भी इसके उल्लेख मिलते हैं। कल्पसूत्र में इस पर भगवान् नेमिनाथ की दीक्षा, केवलज्ञान तथा निर्वाण नामक तीन कल्याणक होने का प्रतिपादन किया गया है। आवश्यक सूत्रान्तर्गत सिद्धस्तव की निम्नोद्धृत गाथा में भी भगवान् नेमिनाथ के दीक्षा, ज्ञान और निर्वाण कल्याणक होने का सूचन मिलता है, जैसे "उज्जिंतसेलसिहरे, दिक्खा नाणं निसीहिया जस्स । तं धम्मचक्कबट्टि, अरिटुनेमि नमसामि ॥४॥" अर्थात्-'उज्जयन्त पर्वत के शिखर पर जिनकी दीक्षा, केवलज्ञान और निर्धारण हुआ उन धर्मचक्रवर्ती भगवान् नेमिनाथ को नमस्कार करता हूँ।' . १. दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थकारों ने "उज्जयन्त” के स्थान में इसका नाम प्रदर्जयन्त" लिखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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