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________________ १४६ : निबन्ध-निचय इसका बचाव करते हैं । उपयोगशून्यता से प्रचलित हुई इन भूलों का सुधार न कर बचाव करना यह सचमुच ही जड़ता है । नं० ५४-५५-५६ ये तीन भूलें पौषध प्रत्याख्यान की हैं । उन भूलों का बचाव करते हुए श्री गांधी लिखते हैं कि 'ठामि काउसग्गं' इसमें जैसे "काउसग्ग" शब्द को द्वितीया विभक्ति लगाई है वैसे “पोसह " शब्द को भी द्वितीया विभक्ति लगाकर " पोसहं" किया यह कुछ गलत नहीं है, परन्तु श्री गांधी को शायद यह खबर नहीं है कि "ठामि काउसग्गं" यह प्रयोग सौत्र है । इसी से टीकाकारों ने अकर्मक 'ठा' धातु को सकर्मक "क्कुञ्' धातु के अर्थ में मानकर इस प्रयोग का निर्वाह किया है । पौषध प्रत्याख्यान यह सामाचारीगत प्राकृत पाठ हैं, इसमें द्वितीया लगाकर जानबूझ कर लाक्षणिक पाठ बनाना अनुचित है " आचारविधि" "पौषध - प्रकरण " आदि में " चउविहे पोसहे" ऐसा ही पाठ मिलता है जिसको विगाड़ कर प्रबोध टीका के संशोधकों ने भूलें खड़ी की हैं । 'भन्ते' पाठ के व्याकरण का वैकल्पिक रूप मानकर गांधी बचाव करते हैं, परन्तु वास्तव में सूत्र के प्रकरणों में ऐसा प्रयोग ग्रहण नहीं किया । क्योंकि कितने ही स्वयं पढ़ करके पौषध ग्रहण करते हैं । व्याकरण ज्ञान के प्रभाव में उनको 'भन्ते' जैसे शब्द अशुद्ध उच्चाररण की तरफ ले जाएँगे । अतः 'भन्ते' इसी प्रयोग को स्वीकार करना चाहिए । "चन्द्रावतंसक" का रूप " चन्दवडिसो" यह भी व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध नहीं माना जाता । कितने ही स्थलों में ऐसे प्रयोग देखने में आते हैं, पर वे प्रचलित भूल का परिणाम मात्र हैं । ऐसे प्रयोगों को लाक्षणिक सिद्ध करने का कोई प्रमाण नहीं मिलता । अतः " चन्दवडंसो" यही प्रयोग शुद्ध है यह मानना चाहिए । नं० ५७-५८-५१-६० - ६१ इन " संथारा पोरिसि की" भूलों में से प्रथम भूल के विषय में गांधी अमुक ग्रन्थों का हवाला देकर उसको "कुक्कुडि" ऐसे रूप में शुद्ध ठहराना चाहते हैं, परन्तु वास्तव में अर्वाचीन ग्रन्थों में देखा जाता " कुक्कुडि" यह शब्द प्रयोग शुद्ध नहीं है, क्योंकि स्त्री वाचक 'कुक्कुडी' शब्द को मानेंगे तो वह 'कुक्कुड़ी' ऐसा स्त्री प्रत्ययान्त दीर्घ होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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