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________________ निबन्ध-निचय : १३६ कि किसी भी प्रामाणिक शब्दकोषकार ने “भुवन" शब्द 'घर' अगर 'मकान' के अर्थ में नहीं लिखा, पर 'जगत्', 'जल' इत्यादि के अर्थ में लिखा है। इस स्थिति में 'भुवनदेवता' 'भुवनदेवी' इन नामों को उपाश्रय की अधिष्ठायक देवी मानने की चेष्टा करना निरर्थक प्रयास है। प्राचीन प्रतिष्ठा-कल्पों में और आवश्यक नियुक्ति में 'भवनदेवा' अथवा 'शय्यादेवी' के रूप में ही इस देवी का नाम देखने में आता है न कि 'भुवनदेवी' । ___नं० ८-६-१०-११-१२ ये पांच भूलें 'अड्डाइज्जेसु' सूत्र की हैं। इनमें की 'पन्नरस' इस भूल के लिए गांधी कहते हैं कि 'पनरस' ऐसा प्रयोग भी होता है। श्री गांधी को मालूम होना चाहिए कि प्राकृत में एक शब्द के अनेक रूप होते हैं। पर उसे हर जगह प्रयोग में नहीं लेते। सूत्र, गद्य वगैरह में 'पन्नरस' इस शब्द का ही प्रयोग होता है, तब छन्दोनुरोध से मात्रा कम करने के लिए संयोगाक्षर को असंयुक्त रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं। "अड्डाइज्जेसु' यह गद्य सूत्र है, इसलिए इसके मौलिक रूप में फेरफार नहीं होता। 'पडिग्गह' आदि शब्दों के अन्त में 'धार' शब्द का प्रयोग भी यथार्थ नहीं है, कारण कि आवश्यक चूरिण में 'पडिग्गहधरा' इत्यादि तीनों जगह पर 'धर' शब्द का प्रयोग है। उसी प्रकार हरिभद्रीय टीका से भी 'धार' इस शब्द की सिद्धि नहीं होती। ये भूलें लम्बे समय से रूढ हैं, इससे अर्वाचीन ग्रन्थों में 'धार' शब्द का प्रयोग दृष्टिगोचर होता है, जो प्रामाणिक नहीं माना जाता । "धार" शब्द भाव वाचक प्रत्यय लगने से बनता है, तब प्राकृत स्थल में शब्द प्रयोग कर्तृवाचक प्रत्यान्त ही संगत होता है भाववाचक नहीं। प्राचीन ज्योतिष शास्त्र तथा सूत्रों की चूणियों में 'क्षुत' यह शब्द "अशुभ अर्थ में प्रयुक्त है। इससे "अड्डाइज्जेसु" में "अक्ख्यायार" यह शब्द ही वास्तविक है। तपागच्छ के प्राचार्य श्री विजयसेन सूरि आदि ने भी “अक्खुयायार" को ही सच्चा प्रयोग माना है। नं० १३-१४ ये भूलें 'भरहेसर-बाहुबलि' नामक स्वाध्याय की हैं । श्री गांधी “विलयजति" इस 'अशुद्ध प्रयोग' को लुप्तविभक्तिक मानकर बचाव करते हैं, परन्तु लगभग ५०० वर्ष पहले लिखे हुए इस स्वाध्याय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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