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________________ ले० पं० कल्याणविजयगरणी प्रतिक्रमण सूत्रों की अशुद्धियाँ १. “प्रतिक्रमण'' शब्द से यहां "श्रावक-प्रतिक्रमण सूत्र' विवक्षित है। इस सूत्र का अनेक संस्थाओं, पुस्तकप्रकाशकों तथा व्यक्तियों ने प्रकाशन किया है। अकेले भीमसी माणक ने ही इसकी १० से अधिक आवृत्तियां निकाली हैं, फिर भी इसकी मांग आज भी कम नहीं है। इस पर से इतना तो निश्चित है कि प्रतिक्रमण सूत्र के एक अच्छे संस्करण की आवश्यकता थी और है। 'प्रबोध टीका' के साथ प्रकाशित "प्रतिक्रमण. सूत्र" प्रथम के संस्करणों से अच्छा कहा जा सकता है, फिर भी सर्वांशों में उपयोगी नहीं कह सकते। गुजराती टीकाकार श्री धीरजलाल ने इसमें अपने विशाल वाचन और सर्वतोमुखी प्रतिभा का यथेच्छ उपयोग किया है। जिसके प्ररिणामस्वरूप ग्रन्थ का यह संस्करण सर्वभोग्य न होने पर भी अध्यापकों और विचारकों के काम का बन गया है । परिणाम यह पायगा कि इसकी अधिक आवृत्तियां निकालने का संभव कम रहेगा। . हमने इस टीका का मात्र “पिठरी-पुलाक-न्यायेन" अवलोकन किया है। इससे इसकी खूबियों और खामियों के विषय में लिखना साहस गिना जायगा तथापि ग्रन्थ के मूल का हमने सम्पूर्ण अवलोकन किया है, इसलिए इसकी संपादनशैली और संशोधन के विषय में कुछ लिखना प्रासंगिक गिनते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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