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________________ १२४ : निबन्ध-निचय को स्थान दिया है । दर्शन शब्द से दार्शनिक तत्त्व-सम्बन्धी मन्तव्य का जो सर्व दर्शनों में “दर्शन" शब्द से प्रतिभान होता है, वह 'श्रद्धा' शब्द से नहीं। इसी प्रकार ज्ञान के स्थान पर “संवित्" शब्द का विन्यास कर लेखक ने "ज्ञान" शब्द के सार्वभौम अर्थ पर पर्दा सा डाल दिया है। ज्ञान शब्द आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव तथा केवल इन पांचों ज्ञानों का प्रतिपादक है। तब “संवित्" शब्द ज्ञान का पर्याय होते हुए भी सभी ज्ञान का प्रतिभास नहीं करा सकता२; प्रथम तृतीय चतुर्थ और पंचम ज्ञान का "संवित्" शब्द से उल्लेख करना निरर्थक है। “संवित्" शब्द से शास्त्र श्रवण मनन से जो प्रतिभास होता है, उसी को सूचित किया जा सकता है, सभी ज्ञानों को नहीं। "चारित्र" शब्द का स्थान "चरण" को देना भी अयोग्य हैं। चारित्र एक प्रात्मा का मौलिक गुण है, तब - (१) श्रद्धा शब्द की निष्पत्ति "श्रत्" अव्यय और "धा" धातु से होती है । देखिए सिद्धहेमशब्दानुशासन का निम्नोद्धृत सूत्र "अर्धांद्यनुकरणाच्चिडाश्चगतिः ३, १, २" इसको बृहद् वृत्ति में "श्रत्-श्रद्धाने शीघ्र च । श्रतश्च दधाति करोतिम्या ।" इस वातिक से श्रत् को शीघ्रार्थक अव्यय मानकर धारणार्यक "धा' धातु के संयोग से "श्रद्धा" शब्द बनाया है, जिसका अर्थ है अभिलाषा। पाणिनीय व्याकरण के अनुसार 'श्रद्धा' शब्द निपात में परिगणित है, और "श्रच्छब्दस्योपसंख्यानम्' इस वातिक से श्रत् को उपसर्ग मान प्रागे "दधाति" क्रिया के योग से भी श्रद्धा शब्द की सिद्धि की है और श्रद्धा का अर्थ अभिलाष सूचित किया है। इस प्रकार के श्रद्धा शब्द के पूर्व में सम्यक् शब्द जोड़कर मभ्यग्दर्शन का भाव निकालना कल्पना मात्र है। (२) संवित् शब्द से ज्ञान मात्र का आभास नहीं कराया जा सकता क्योंकि संवित् शब्द की मूल प्रकृति ऐकार्यक नहीं है, जैसे-विद् ज्ञाने-वेदवित्, विद्-सत्तायाम्-प्रवित्, विद्विचारणे-ब्रह्मवित् । इस प्रकार ज्ञान के अर्थ में रूढ ज्ञान शब्द को हटाकर उसके स्थान पर अनेकार्य संवित् शब्द को जोड़ना भद्दा ही नहीं प्रान्तिकारक भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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