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________________ निबन्ब-निचय पंचम उद्देशक में तुंगिया नगरी के श्रावकों का जो वर्णन दिया गया है, उसे नीचे उद्धृत करते हैं। दोनों का मिलान करके पाठकगण देखें कि लेखक ने तुंगिया नगरी के श्रावकों के वर्णन में अपने घर का कितना मसाला डाला है "तेणं कालेगं २ तुगिया नाम नगरी होत्था, वण्णो , तीसे गां तुंगिनाए नगरोए बहिया उत्तरपुरिच्छिमे दिसिभाए पुप्फवतिए नामं उज्जाणे होत्था, वण्णो , तत्थ णं तुंगियाए नयरीए बहवे समगोवासया परिवसंति-अड्डा दित्ता विच्छिण्णविपुलभवण-सयरणासणजाणवाहणाइण्णा, बहुधरण-बहुजायरूबरयया, अारोगपयोगसंपउत्ता विच्छड्डियविपुलभत्तपारणा बहुदासीदासगोमहिसगवेलयप्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा, उवलद्धपुण्णपावा आसवसंवरनिन्जरकिरियाहिकरण-बंधमोक्खकुसला, असहेजदेवासुरनागसुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किंनर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व -महोरगाइएहि देवगणेहिं निग्गंथानो पावयणाप्रो अणतिकमणिज्जा, निग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कखिया निवित्तिगिच्छा, लट्ठा, गहियट्ठा, पुच्छियट्ठा, अभिगयट्ठा, विरिणच्छियट्ठा, अट्ठिमिंजपेम्माणुरागरत्ता, अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठ; अयं परम8, सेसे अरण8, ऊसियफलिहा, अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउरघरप्पवेसा, बहूहिं सीलव्वय-गुणवेरमरणपच्चक्खाणपोसहोववासेहिं चाउद्दसट्ठमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुन्नं पोसह सम्म अणुपालेमाणा समणे निग्गंथे फासुएसरिणज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकबल-पायपुंछरोण-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं-अोसहभेसज्जेरण य पडिलाभेमारणा अहापडिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पारणं भावेमारणा विहरंति ॥१०६॥" प्रतिमाधिकार के लेखक द्वारा दिये हुए तुंगिया नगरी के श्रावकों के वर्णन के साथ भगवती सूत्र के पाठ का कुछ भी सम्बन्ध नहीं है, यह पाठक स्वयं समझ लेंगे। भाष्य चूरिण में से निम्नलिखित पाठ दिया है "अनिस्सकडं विहिचेइअं, आययणं, आगमपरतंतयाए सुगुरूवएसेण सुसावगेहिं नायजिअवित्तेणं सपरहिसाए परमपयसाहणनिमित्तं आगमविहिणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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