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________________ ११४: निबन्ध-निचय असद्ध संजराइ इइ काऊरणं" महानिशीथे साधूनां त्रिसंध्यं देववन्दनविचारः॥ ऊपर का सूत्रपाठ लेखक ने महानिशीथ में होना लिखा है। यह पाठ महानिशीथ में शब्दशः नहीं है और न इसमें सूचित प्रायश्चित्त ही महानिशीथ के अतिरिक्त अन्य किसी सूत्र में लिखा मिलता है । उपर्युक्त सन्दर्भ के उसी एकानवे पत्र में तंगिया नगरी के श्रावकों के वर्णन का सूत्रपाठ दिया है जो यथार्थ नहीं है। तुंगिया नगरी के जैन श्रावकों का वर्णन भगवती सूत्र के द्वितीय शतक के पांचवें उद्देशक में मिलता है। परन्तु उस वर्णन के और इसके बीच तो रात दिन का अन्तर है। यह वर्णन अधिकांश कल्पित और उपजाया हुआ है। इसमें जो श्रावकों के नाम दिये हैं वे भिन्न-भिन्न गांम-नगरों के रहने वाले थे, जो यहाँ सब को इकट्ठा कर दिया है। पाठकों के कौतूहल निवृत्यर्थ प्रतिमाधिकार का वह पाठ नीचे लिख देते हैं "ते णं कालेणं २ जाव तुंगिनाए नयरीए बहवे समणोवासगा परिवसंति-संखे, सयगे सिलप्पवाले, रिसिदत्ते, दमगे, पुक्खली, निविट्ठ, सुप्पइ8, भाणुदते, सोमिले, नरवम्मे, आणंदे, कामदेवाइणो अ जे अन्नत्थ गामे परिवसंति, अहादिता विच्छिन्न विपुलवाहणा जाव लट्ठा गहिअट्ठा, चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं पालेमाणा निग्गंथाणं निग्गंथीणं फासुएसरिणज्जेणं असणं पडिलाभेमाणा चेइपालएसु तिसंझासमए चंदण-पुप्फ-धूप-वत्थाईहिं अच्चणं कुणमारणा जाव जिणहरे विहरंति, से तेण?णं गोमा जो जिणपडिमं पूएइ सो नरो सम्मद्दिट्ठी जारिणयव्वो, मिच्छादिट्ठिस्स नाणं न हवइ ॥" प्रतिमाधिकार के लेखक ने ऊपर जो तुंगिया नगरी के श्रावकों का वर्णन किया है, वह कहां का पाठ है यह कुछ नहीं लिखा। इसका कारण यही है कि सूत्र का नाम देने से सूत्र के पाठ के साथ इस पाठ का मिलान कर पाठकगण पोल खोल देंगे। हम भगवती सूत्र के दूसरे शतक के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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