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________________ निबन्ध - निचय उपर्युक्त फिकरे में खरतरगच्छ और अंचलगच्छ के साधुओं का दृष्टान्त देकर लेखक ने अपने आप को उपर्युक्त दो गच्छों से भिन्न किसी गच्छ का अनुयायी बताने की चाल चली है, परन्तु इस चाल से भी अपने गच्छ को गुप्त नहीं रख सकेगा, क्योंकि इस ग्रन्थ में अनेक ऐसे कल्पित पाठों के प्रमाण दिये हैं, जो लेखक के गच्छ को नहीं रहेंगे । प्रकट किये बिना ११० : " प्रतिमाधिकार" के ५८वें पत्र में महानिशीथ का एक पाठ दिया है जो नीचे लिखा जाता है "बारवईए नयरीए अरिट्ठ नेमिसामी समोसरिप्रो, तत्थ कण्हो वागरेइभयवं तिन्निसयसदृणं दिवसारणं मज्झे एगं उकि दिवस साहेह, सुरणसु कण्हा ? मग्गसिर सुद्धिएकारसी दिवस पन्नासजिरणकल्लारणगाणं दिल भण्णइ, तम्हा समरण वा समणीइ वा सावरण वा साविआइ वा तमि दिणे विसेस धम्मागुट्ठाणं कायव्वं " श्री महानिशीथे ॥ उपर्युक्त प्राकृत पाठ "महानिशीथ" में होने का लिखा है, परन्तु यह पाठ महानिशीथ में नहीं है । महानिशीथ को हमने दो बार अच्छी तरह पढ़ा है । महानिशीथ में उपर्युक्त पाठ के विषय की सारे सूत्र में सूचना तक नहीं है, न इस पाठ की भाषा ही महानिशीथ की है । किन्तु ३०० ४०० वर्ष के भीतर की यह भाषा स्वयं बता रही है कि उक्त पाठ किसी ने नया बनाकर इस संग्रह में रख दिया है । इसी प्रकार " प्रतिमाधिकार" के ६४वें पत्र में आचार्य, महत्तरा, प्रवर्तिनी के प्रायश्चित्त का में होना लिखा है जो गलत है। लिखा है साधु और परिमाण महानिशीथ के ५वें अध्ययन महानिशीथ में से निम्नोद्धृत पाठ " से भयवं प्रायरिआरणं केवइयं पायच्छित्तं भवेज्जा ? जमेगस्स साहुणो तं यरित्र महत्तरा पवित्तिणीए सत्तरसगुणं, ग्रहेणं सीलखलिए , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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