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________________ निबन्ध-निचय : १०६ में समर्थ हो सकती है या नहीं इस विषय में तपागच्छ के प्राचार्य निश्शंक नहीं थे। क्योंकि शास्त्र में लिखा है कि मधुर रस वाला पदार्थ जल को देरी से अचित्त बनाता है और वह जल जल्दी सचित्त बन जाता है। इस दशा में काथ कसेल्लाकादि के जल की तरफदारी करने वाला लेखक तपागच्छ का हो सकता है या खरतरगच्छ का? इस बात का पाठकगण स्वयं निर्णय करलें। जल के सम्बन्ध में ही लेखक आगे एक प्रश्न करके जल सम्बन्धी चर्चा को आगे बढ़ाता है "ननु तंडुलादिधावनं किमिति निशिन पीयते ? उच्यते-पूर्वपरम्पराप्रामाण्यात्, न पुनरत्र जलत्वेन यथा हि खरतराणां शर्कराजलेक्षुरसो, आंचलिकानां च तक्रं भुक्तवोत्थितैः साध्वादिभिः प्रत्याख्यानेऽपि कारणे सति दिवा पीयते निशि न, तथा धावनमपि दिवा पीयमानमपि निशि न पीयते इति ब्रूमः, निशि हि मुख्यवृत्या श्राद्धानामपि चतुर्विधाहारप्रत्याख्यानमेवोक्तमस्ति, यदि च जातु ते तत् कर्तुं न शक्नुवन्ति तदा तेषां पूर्वाचार्यै रेकमुष्णोदकमेवानुज्ञातं कारणे ॥" ऊपर के फिकरे में लेखक खरतर तथा अंचलगच्छ के अतिरिक्त अन्य गच्छीयपन का ढोंग कर प्रश्न करता है कि जब तुम तन्दुलादि धावन की हिमायत करते हो तो रात्रि के तिविहार-प्रत्याख्यान में तन्दूलादि धावन जल क्यों नहीं पीने देते और उष्ण जल पीने का उपदेश क्यों करते हो? इसके उत्तर में वह कहता है, इसमें पूर्वाचार्यों की परम्परा ही प्रमाण है। जिस प्रकार खरतरगच्छ में शक्कर का पानी तथा इक्षु रस और अंचलगच्छ में छाछ भोजन कर उठने के बाद साधु आदि प्रत्याख्यान में भी कारणवश दिन में पीते हैं, रात्रि में नहीं। इसी प्रकार दिन में पिया जाता तन्दुल धावन भी रात्रि में नहीं पिया जाता है। श्रावकों को भी मुख्य वृत्ति से रात्रि में चतुविधाहर का प्रत्याख्यान करना कहा है, फिर भी जो चतुविधाहार का प्रत्याख्यान कर न सके तो उसके लिए पूर्वाचार्यों ने कारण विशेष में एक उष्ण जल पीने को प्राज्ञा दी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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