SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निबन्ध-निचय १०७ : अर्थात् शास्त्र में वर्णान्तरादि प्राप्त जल को प्रासुक कहा है, परन्तु तपोटों ने व्रती तथा गृहस्थों के लिए उसका निवारण किया और अप्कायमात्र की हिंसा से जो जल प्रासुक होता था, उसके स्थान में छ: जीवनिकाय के उपमर्दन से तैयार होने वाले उष्ण जल की गृहस्थों के सामने प्ररूपणा की। आचार्य जिनप्रभ का सत्ता समय विक्रम की १४वीं शती है, परन्तु उसके सैकड़ों वर्षों के पहले से खरतरगच्छ के उपदेशक उष्ण जल का विरोध और काथकसेलकादि से अचित्त होने वाले जल की हिमायत करते रहे हैं। देखिये श्री उ० जयसोम गणी विरचित "प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक" का निम्नलिखित पाठ "अम्हारइ सम्प्रदायि उन्हा पाणी ना मेल थोड़ा, गृहस्थ फासु वर्णान्तर प्राप्त पाणी सहू पीयई, अनइ यति पण श्रेहना अ फासूजि पाणी पीयई, एहजि ढाल छई, इम कनतां जइ यति उन्हा पाणी पीता हवई तउ अम्हारइ काजि 'अपउल दुपउल नामइ उन्हा करीनइ गृहस्थ यतिनइ उन्हा पाणि आपतजि, परं इणजि मेलि चित्तमांहि निरवद्य उन्हा पाणि यतिनइ दोहिला जाणीनइ अम्हारिगीतार्थे जे सचित्त परिहारी गृहस्थ पीयइ तेहजि प्रासुक पाणी यतिनइ वावरिवा भरणी प्रवर्तीयउ ते भणी उन्हा पाणी त्रिदण्डोत्कालित-अरणसणमांहि समाधि निमित्त वर्णान्तर प्राप्तजि पाणी पाईयइजि ॥" उपर के लेख में अनशन करने वाले साधु गृहस्थ को भी वर्णान्तर प्राप्त शीतल जल पाने की बात कही है। परन्तु अनशन किये हुए यति गृहस्थ को वर्णान्तर प्राप्त पानी पाना हमारी समझ में अच्छा नहीं होता, क्योंकि तीन उपवास के ऊपर के विकृष्ट तप करने वाले साधु को भी केवल उष्ण जल पीने की कल्प-सूत्र में आज्ञा दी है, तब अनशन करने वाले साधु गृहस्थों को वर्णान्तर प्राप्त जल पीना शास्त्रीय दृष्टि से ठीक है या नहीं; इस बात पर खरतरगच्छ के विद्वानों को अवश्य विचार करना चाहिए। उस समय खरतरगच्छीय साधु लोग अपने अनुयायी श्रावक श्राविकाओं को कषायले पदार्थों से अचित्त पानी पीने का नियम कराते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy