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________________ निबन्ध-निचय : १०५ विक्रम संवत् १५४२ में हुआ था। इससे जाना जाता है कि यह पट्टावली श्री जयकेसरी सूरि की विद्यमानता में लिखी होगी। फिर भी इस पर हम अधिक विश्वास नहीं कर सकते, क्योंकि इसी ग्रन्थ के पत्र ६ठे में “संवत् १५८० वर्षे वैशाख वदि १३ सौमे" बिना प्रसंग के इस प्रकार संवत् लिखा हुआ मिलता है और उपर्युक्त अंचलगच्छ की पट्टावली भी इसी प्रकार बिना सम्बन्ध और प्रसंग के लिखी गई है। संभवतः लेखक ने अंचलगच्छ के आचार्यों को जमालि के वंशज खिलने से अंचलगच्छ वालों का "तपागच्छ' वालों पर शक जायगा, क्योंकि पहले भी तपागच्छ के विद्वानों ने 'श्राद्धविधि-विनिश्चय' आदि ग्रन्थों में पौर्णमिक, प्रांचलिक, प्रागमिक, खरतर आदि गच्छों की उत्पत्ति लिखकर उनका खंडन किया है। उसी प्रकार इस संग्रह के लेखक को तपागच्छ का विद्वान् मानकर अपना रोष उगलेंगे और खरा लेखक अज्ञात ही रहेगा। परन्तु लेखक की यह होशियारी गुप्त रहने के स्थान पर प्रकट हो गयी है, क्योंकि तपागच्छ के प्राचीन विद्वानों ने अंचलगच्छ के सम्बन्ध में जहाँ कहीं लिखा है, वहाँ सर्वत्र अंचलगच्छ का प्रादुर्भाव संवत् ११६६ में ही होना लिखा है । केवल उपाध्याय धर्मसागरजी ने इसके विपरीत सं० १२१४ का उल्लेख किया है। खरतरगच्छीय ने जिस भी पट्टावली में अंचलगच्छ की उत्पत्ति लिखी है, वहाँ सर्वत्र समय १२१४ लिखा है, जो प्रस्तुत पट्टावली लिखने वालों ने लिखा है। इस परिस्थिति में प्रस्तुत "जिन-प्रतिमाधिकार" लिखने वाला व्यक्ति तपाच्छीय हो सकता हैं अथवा खरतरगच्छीय इस बात का पाठक स्वयं विचार कर सकते हैं। "प्रतिमाधिकार" के पत्र ३६ में कांजिक आदि जल लेने न लेने की बड़े विस्तार के साथ चर्चा की है और खरतरगच्छ वाले काँञ्जिक जलादि न लेने की जो बात कहते हैं उस बात का स्पष्ट रूप से खण्डन किया है। उनके ग्रन्थ के शब्द नीचे दिये जाते हैं "ये तु श्री आगममध्यस्थानप्रोक्तकांजिकजलग्रहणेऽनंतकायविराधनामुद्भादयंति ते आगममार्गपराङ्मुखा जिनाज्ञाविराधकाः सर्वथा साद्भरपकर्णनीया इति, तथा केचिच्च कांजिकादिजलग्रहणाशक्ती जिनकल्पिकानामे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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