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________________ निबन्ध-निचय गच्छ वालों की मान्यताओं का खण्डन किया है। अंचल-गच्छ वालों को जमालि-परम्परा में बताया है। कतिपय तपागच्छ की मान्यताओं का समर्थन भी किया है। इतनी होशियारी करने पर भी इस संग्रह के विषयों की गहराई में उतर कर वास्तव में लेखक किस गच्छ-सम्प्रदाय को मानने वाला है, इसका पता लगाया जा सकता है। प्रस्तुत संग्रहकार ने अपने संग्रह का नाम "जिनप्रतिमाधिकार" दिया है, फिर भी यह संग्रह हमारी दृष्टि में भिन्न-भिन्न ग्रन्थों के पाठों का संग्रह मात्र बना है, ग्रन्थ के रूप में व्यवस्थित नहीं। प्रारम्भ की पंक्तियों में लेखक ने जिन-जिन विषयों का निरूपण करने की प्रतिज्ञा की है, उनमें से प्रथम विषय जिनपूजा की चर्चा ग्रन्थ के २६में पत्र में पूरी होती है। तब साधु-स्थापना, दान स्थापना, सार्मिक वात्सल्य स्थापना, और पर्युषणा-इन चार विषयों का थोड़ा-थोड़ा निरूपण करके इन्हें जिन-पूजा के अन्तर्गत ही कर दिया है। इतना ही नहीं बल्कि दूसरी भी पचासों बातों को चर्चा की है, जिनका प्रारम्भिक सूचन में निवेदन नहीं है। इतना ही नहीं, परन्तु प्रारम्भ में सूचित दिषयों के साथ सम्बन्ध तक नहीं है, अस्तु । अब हम प्रारम्भ में सूचित विषयों के सम्बन्ध में कुछ ऊहापोह करेगे। लेखक ने जिन विषयों के समर्थन में सूत्रों के प्रमाण देने की प्रतिज्ञा की है, उनमें श्री जिनपूजा, जिनप्रतिमा, जिनप्रासाद, दान, सार्मिक वात्सल्य, पुस्तक पूजा और पर्युषणा पर्व, इन सात बातों को लोकाशाह मत के अनुयायी प्रारम्भ में नहीं मानते थे, इसलिए मुख्यतया लोंकामत के खण्डन में प्रस्तुत पाठ संग्रह किया है। १. पारात्रिक, २. मंगल प्रदीप और ३. श्रावक प्रतिक्रमण इन बातों को अंचलगच्छ बाले उस समय नहीं मानते थे, तब साधु-संस्था को न मानने वाले कडुवाशाह के अनुयायी थे। लोंका तथा कडुअा मत की स्थापना विक्रम की सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुई थी, तब अांचलगच्छ जो विधि-पक्ष के नाम से भी परिचित था और विक्रम संवत् ११६६ में स्थापित हुआ था। इनके संस्थापक आचार्य प्रार्यरक्षित थे, कि जिनका जन्म आबु पर्वत की दक्षिणपश्चिमीय तलहटी से लगभग आठ माइल पर अवस्थित !'दतांणी" गांव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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