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कृत्रिम कृतियाँ
यों तो सभी ग्रंथ किसी न किसी द्वारा निर्मित होने से कृत्रिम ही होते हैं, परन्तु यहाँ कृत्रिम शब्द का अर्थ कुछ और है। कोई ग्रंथ-सन्दर्भ बनाकर किसी प्रसिद्ध विद्वान् के नाम पर चढ़ा देना अथवा अन्य की कृति को अपने नाम से प्रसिद्ध करना उसका नाम हमने “कृत्रिम कृति' रखा है। इसके अतिरिक्त जिस पर कर्ता का नाम नहीं और उसका विषय कल्पित है अथवा आपत्तिजनक है, वह भी हमारी राय में 'कृत्रिम कृति" ही है। इस प्रकार की “कृत्रिम-कृतियाँ" अाज तक हमारी दृष्टि में अनेक आई हैं, उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जाता है
(१) महानिशोथ :
कृत्रिम कृतियों में विशेष ध्यान देने योग्य वर्तमान "महानिशीथ-सूत्र" है। यद्यपि "नन्दी-सूत्र” तथा “पाक्षिक-सूत्र' में महानिशीथ का नामोल्लेख मिलता है, तथापि “नन्दी-सूत्र" के निर्माण काल में मौलिक "महानिशीथ" विद्यमान होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। “नन्दि-सूत्र" में अन्य भी अकेक सूत्रों, अध्ययनों के नाम लिखे गए हैं, जो "नन्दि-सूत्र" के रचना समय के पहले ही विच्छेद हो चुके थे। विद्यमान "महानिशीथ" विक्रम की नवम् शताब्दी में चैत्यवासियों द्वारा निर्मित नया सूत्र सन्दर्भ है । इसका विषय बहुधा जैन आगमों से विरुद्ध पड़ता है। हमने इसे तोन बार पढ़ा है और दो बार इसका नोट भी लिया है। ज्यों ज्यों इसके विषय की विचारणा की गहराई में उतरे त्यों त्यों इसकी कृत्रिमता हमारे
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