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निबन्ध-निचय
श्लोकों से दो व्याख्यान पूरे किये हैं। भिन्न भिन्न ग्रन्थों के श्लोक तथा पंक्तियां उद्धृत करके प्राचार्य श्री हीर सूरि का परिचय देने में एक व्याख्यान पूरा किया है। अन्त में अपनी संक्षिप्त प्रशस्ति दी है और "प्रासाद" का विशेष परिचय देने में एक अन्तिम व्याख्यान और पूरा किया है। इस प्रकार कुल व्याख्यानों की संख्या ३६१ दी है, जब कि आप प्रत्येक व्याख्यान की समाप्ति में 'इत्यब्ददिनपरिमितोपदेशसंग्रहाख्यायां उपदेशप्रासाद-ग्रन्थ वृत्तौ' इस प्रकार की पुष्पिकाओं में “अब्द परिमित दिन" शब्द का उल्लेख करते हैं, इससे जाना जाता है इनका आशय प्रकर्म संवत्सर दिन परिमित व्याख्यान रचने का है। इस परिस्थिति में व्याख्यानों की संख्या ३६१ की बताना असंगत प्रतीत होता है ।
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