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निबन्ध-निचय
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पट्टपर विजयराजसूरि विद्यमान थे, तब विक्रम सं० १७३१ की साल में "धर्म संग्रह " को समाप्त किया था । आपने अपनी गुरुपरम्परा निम्न प्रकार की बताई है - श्री विजयानन्दसूरि के विद्वान शिष्य शान्तिविजयजी हुए, जो बड़े विद्वान् विनीत और अपने गच्छ की व्यवस्था करने वाले थे, उन शान्तिविजयजी के शिष्य उपाध्याय मानविजयजी ने " धर्मसंग्रह " ग्रन्थ at fनर्माण किया । इसमें जो कुछ भूल रही हो उसे सुधारने की ग्रन्थकार की विद्वानों को प्रार्थना है ।
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