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निबन्ध-निचय
विजयरत्नसूरिजी का प्राचार्य पद विक्रम सं० १७३२ में होने के बाद को है, एक स्थान पर ग्रन्थकार लिखते हैं-'यह ग्रन्थ साधु कल्याण विजय के बोधार्थ बनाया," यह कल्याणविजय इनकी शिष्यपरम्परा में नहीं थे, किन्हीं दूसरे के शिष्य होंगे पोर उनको श्रद्धा स्थिर करने के लिए उपा० मेघविजयजी ने इस ग्रन्थ को बनाया होगा।
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