________________
त्रिस्तुतिक-मत - मीमांसा ।
इस बात की भी खोज करें कि कई पीढियां वर्णपरावर्तित वस्त्र धारण करती आई हैं या आज कल का ही यह बर्ताव है ? न मालूम ऐसा उटपटांग लिखमारना लेखकों ने किस गुरु से सीख लिया होगा ? |
लेखक कहते हैं कि
" श्वेतवस्त्र वाले सब साधु राजेन्द्रसूरिजी के ही हैं "
मैं नहीं समझ सकता कि सर्व श्वेताम्बर साधुओं को लेखक राजेन्द्रसूरिजी के किस न्याय से कहते हैं ? प्रथम तो वर्तमान में aaaa धारी कहलाने वाले साधु ही वे हैं जो प्राणातिपातादि पांच प्रकार के आश्रवो में लगे रहते हैं और मारे लोभ के गांव २ भटकते फिरते हैं क्या उन्हें भी लेखक राजेन्द्रसूरिजी के साधु मानते हैं ? |
शायद मान भी लें पर यह भी होवे कैसे ? |
राजेन्द्रसूरिजी से तो ये लोग भी इस कदर नफरत करते हैं जैसे उल्लू से कौ ! |
७७
यदि पायचंद या अंचलगच्छ के साधुओं को लेखक राजेन्द्रसूरिजी के मानते हों तो यह भी अन्याय है, उनका मत दूसरा उनकी क्रिया जुदी तो उल्लू के सिवा दूसरा कौन उनको अपना कह सकता है ? |
यदि वे से ही लेखकों को उनका मोह लगा हो तो उनके साथ आहार- पानी, वंदनादि व्यवहार क्यों नहीं करते ? क्यों लेखकजी ! अब तो आप के सूरिजी के इने गिने १० - १५ साधु है यह सिद्ध हुआ कि नहीं ? | फिर लेखकजी बयान करते हैं कि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org