________________
त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
और उसके ऊपर राजेन्द्रसूरिजी ने अपने नाम का ' संवत् ( १९४८ ) व० वैशाख सुदि (६) श्रीपार्श्वबिंब प्रतिष्ठितं भ० राजेन्द्रसूरिणा जालोर नगरे कांकरिया वास मध्ये ' यह उपर का लेख जैनभिक्षुजी ने अत्यंत ही असत्य ( झूठा ) छपवाया है क्यों कि कोई स्थान पर नहीं तो राजेन्द्रसूरिजी ने अखंडित प्राचीन मूर्तियों को उठवाकर नयी स्थापित करवाई है ! न तो कांकरियावास के मूलनायकजी के उपर प्राचीन आचार्य के नाम का लेख था ! और न राजेन्द्रमूरिजीने मुसलमान शिलावट के पास घिसवाया !"
कौन कहता है जैनभिक्षुजी का यह लेख झूठा है ? जैनभिक्षुजी का यह कथन सत्य है कि राजेन्द्रमूरिजी ने कई जगह पर प्राचीन मूर्तियां उठवाई और जहां तक अपनी चली उन मूर्तियों के लेख भी घिसवाये हैं, जिस का ताजा दृष्टान्त यह है कि संवत् १९५५ की साल में राजेन्द्रमूरिजी ने आहोर में प्रतिष्ठा तथा अंजनशलाका की थी, यह बात उस तर्फ के लोग प्रायः जानते ही होंगे, उसी मौके पर गांव 'गुडा-बालोतरा' से एक प्राचीन जिन मूर्ति-जिस पर संवत् १२१३ का लेख भी मौजूद है-राजेन्द्रमूरिजी ने फिर उस की प्रतिष्ठा, अंजनशलाका करने के लिये अपने रागी श्रावकों को भरमा के उसे आहोर मंगवाने का उद्योग किया, वह कुछ सफल भी होने की तय्यारी में आ गया, बात यों बनी कि राजेन्द्रसरिजी की शिक्षा के अनुसार उन के श्रावकों ने उस प्राचीन मूर्ति को बैल गाडीमें बिठा कर रातोरात आहोर की तर्फ खाना कर दी, पर ऐसा अन्याय गुप्त भी कहां तक रहता है ? जल्दी ही इस प्रपंच का पता गांव के महाजन को लग गया उन्होंने उन प्रपंची त्रैस्तुतिकों का पीछा किया और 'आहोर' के दरवाजे के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org