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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
पास उस प्रतिमा को आगे ले जाने से रोका, बहुत प्रपंच हुआ
और आखिरकार प्रतिमा ज्यों की त्यों पीछी — गुडे में ' लाई गई जो आज तक वहां मूलनायक के स्थान पर पूजी जाती है । अगर इस में किसी को शंका हो-कि पूर्वोक्त हकीकत बनी बनाई है या कल्पित है-वह गुडा के श्री संघ से दर्याफत कर के समाधान कर लेवे, और यह शंका हो कि उस पर शिला लेख है कि नहीं उसे वहां जा कर उस पूर्ति का दर्शन कर के समाधान कर लेना चाहिये, क्यों कि वह लेख अभी तक मौजूद है जिस को घिसवाने का प्रपंच राजेन्द्रमूरिजी ने किया था।
लेखक जी ! आप ही कहिये जैन भिक्षु का लिखना गलत है या आप का ? इस हकीकत में रत्तिभर भी जूठ हो तो दिखा दीजिये ।
इसी प्रकार गांव 'कोरटे' में जो प्राचीन प्रतिमायें निकली हैं उन पर भी राजेन्द्रसूरिजी ने प्रतिष्ठा के समय अपने नाम का लेख लिखना चाहा था परंतु आस पास के गावों के संघने यह वांचा लिया कि 'यदि राजेन्द्रसूरिजी ने इन प्रतिमाओं पर नया लेख खुदवाया तो हम प्रतिष्ठा में ठहरेंगे नहीं' तब उन्होंने सबर किपा, अन्यथा कोरटा में भी प्राचीन ले वों को विसमाकर नया लेख खुदवा ही लेते !।
लेखकजी महाराज ! हम आप के मूरिजी की कितनी करतू। लिखें ! उन्होंने अपनी लगभग सारी जींदगी इसी प्रकार के कामों में बरबाद को है जो फायदे के बदले नुकसानकारक थे ।
लेखकों की यह दलील कि-कांकरियावास के मूलनायक जी के ऊपर शिलालेख था ही नहीं तो राजेन्द्रमूरिजी घिसवावे
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