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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
सरासर झूठ है, तीन थुई कथन करने वाला शास्त्र ही नहीं तो तीन थुई के देववंदन आये कहां से? ।
स्तुतिक लोगों का कथन है कि 'कल्पभाष्य ' में तीन थुई करना कहा है, इस विषयमें उनके पास प्रमाण निम्न लि. खित दो गाथाएं हैं.
" दुब्भिगंधमलस्सावि, तणुरप्पेस न्हाणया । दुहा वाओवहो चेव, तो चिट्ठति न चेहये ॥१॥ तिणि वा कढई जाव, थुइओ तिसिलोगीया ।
ताव तत्थ अणुन्नायं, कारणेण परेणंवि ॥ २ ॥ ये दोनों गाथाएं राजेन्द्रसरिजी के स्वहस्तलिखित चैत्यवन्दनविचार पत्र-जो हमारे पास मौजुद हैं उन में से ज्यों की त्यों यहां पर लिखी हैं, इस से इस बात का भी पता चल सकता है कि राजेद्रमूरिजी संस्कृत या प्राकृत का शुद्ध लिखना भी नहीं जानते थे, क्यों कि इन दो गाथाओं में भी कितनी अशुद्धियां लिख मारी ? 'वाओं यहां 'वाउ' चाहिये 'थुइओ' की जगह 'शुईओ' चाहिये, 'सिलोगीया के स्थान 'सिलोगिया' या 'सिलोइया' होना चाहिये, 'परेणं वि' यहां 'परेण वि' ऐसा चाहिये, इत्यादि। वाहरे कलिकालसर्वज्ञ! प्राकृतव्याकरणविषयक हस्व, दीर्घ आदिकी अशुद्धियां भी तेरे ज्ञान में नहीं भासी ? ।
पाठकसजनो ! अब इन्हीं महात्मा का लिखा हुआ पूर्वोक्त गाथाओं का अर्थ भी अक्षरशः नीचे लिखा जाता है देख लीजिये,
" दुर्गंधी और मलका झरणहारा एसा सरीर है जो सोनांन करो तो भी उपर ओर नीचे से वायु वह रहा ताते न रहे चेत्य में कारणे
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