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त्रिस्तुतिक मत--मीमांसा ।
'चोथी थुई करना कालकाचार्य जी ने शुरू किया' ।
मेरा उन भोले भाले लोगों से यह प्रश्न है कि आप को ऐसा स्वम आया कि 'चोथी थुई कालकाचार्य जी ने की ? या किसी निरक्षर की हां में हां करते हो ? तुम्हारी अक्ल घर पर है या नहीं ? जरा अंधकार से दूर हो के शास्त्र के पन्ने खोलो ! कालकाचार्य जी ने चोथ की संवत्सरी की है या चोथी थुई ? ।
वाह रे अज्ञान ! तेरा प्रभाव भी अपूर्व है विना ही तकलीफ मनुष्य को अन्धा बनाने वाली तेरी इस लीला की क्या तारीफ की जाय ।
लेखक कहते हैं कि
'संवत् (१२५० ) में श्रीसौधर्मसिद्धांतिक गच्छ में से आगमिकमतोत्पत्तिके करने वाले श्री शीलभद्राचार्य हुये तिन्होंने सर्वथा चोथी थुई उत्थापके एकांत तीन थुई के देववंदन स्थापन किये'
सरासर असत्य है, आगमिकमतोत्पत्ति के करने वाले आचार्य का नाम ' शीलभद्र' नहीं था किंतु 'शीलगण' था, और उन ने सौधर्मसिद्धान्तिक गच्छ में से यह मत नहीं निकाला, वे पहले पौर्णमीयक गच्छ में थे बाद उस में से निकल कर अंचल गच्छ में आये और पीछे आगमिक मत निकाला ( देखो प्रवचन परीक्षा पत्र ३०६ ). ___आगमिकों ने राजेन्द्रमरिजी की तरह तीन थुई का मत नहीं निकाला, उन का मात्र यह कथन था कि श्रुतदेवतादि के पास मोक्ष की प्रार्थना नहीं करनी चाहिये,
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