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त्रिस्तुतिक-मत--मीमांसा ।
तिक्रमण नहीं हो सकता तो फिर लेखकों और उन के गुरु जी का 'सामायिक विना भी प्रतिक्रमण होता है । यह कथन उन के अंधभक्तों के सिवा और कौन मानेगा ?।
तीनथुई मतावलंबी साधु और उन के अनुयायी लोग भोले लोगों को यों समझा देते हैं कि
'चोथी थुई तो पूजा प्रतिष्ठादि विशिष्ट कारण के लिये है, सामायिक प्रतिक्रमण विगैरह में तो तीन थुई करना ही शास्त्रों में कहा है'
भोले लोगों को धोका देने वाले उन त्रैस्तुतिक महाशयों को मैं प्रतिज्ञा के साथ कहता हूं कि
'चोथी स्तुति पूजा प्रतिष्ठा में ही कहने के लिये है प्रतिकमण में नहीं..
ऐसा किसी भी चतुर्थस्तुतिप्रतिपादक शास्त्र का प्रमाण तुम्हारे पास हो तो पेश करो मैं उस मुजब वतने को तय्यार हूँ अगर तुम ऐसा प्रमाण नहीं बता सकते हो तो इस बात को कबूल करो कि
'यदि मैं शास्त्र का ऐसा प्रमाण बता दूं कि समायिक प्रतिक्रमण में भी चोथी थुई कहनी चाहिये तो तुमको चोथी थुई करनी पडेगी'
यदि इन दो पक्षों में से एक भी तुम नहीं स्वीकारोगे तो मैं और सब पाठक महाशय यही समझेंगे कि तुम्हारे इस नवीन मत में ढोल के जितनी पोल है।
कई अज्ञान के उपासक त्रैस्तुतिक तो यों भी डींग मार देते हैं कि
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