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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
लेखक जगह जगह उल्लेख करते हैं कि सामायिकसहित पौषध प्रतिक्रमण में तीन थुई का देववंदन करना' ___मैं पूछता हूँ कि क्या सामायिक रहित भी पौषध प्रतिक्रमण होता है कि जिस में देववंदनक्रिया की जरूरत रहती हो ? ले. खकजी किसी भी शास्त्र का यह प्रमाण दे सकते हैं कि 'सामायिक विना भी चतुर्विधपौषध या षडावश्यकात्मक प्रतिक्रमण हो सकता है ? '
मुनने हैं, लेखकजी के गुरु-धनविजय जी भी कई लोगों के आगे इसी प्रकार से उत्सूत्र प्ररूपणा करते हैं कि 'सामायिक विना भी प्रतिक्रमण हो सकता है, ' बडा आश्चर्य है कि उन्हों ने यह सिद्धान्त लाया कहां से ?, शास्त्र तो साफ साफ कहता है कि सामायिक विना प्रतिक्रमण हो ही नहीं सकता. देखिये संदेहदोलावलि की गाथा ४१ वीं की टीका का .
“ सामायिकाविनाभावित्वात्प्रतिक्रमणस्य प्रतिक्रमणे कथिते सामायिकमागतमेव ।" - यह पाट, इस का अर्थ यह है कि 'सामायिक विना प्रतिक्रमण नहीं हो सकता, इस लिये प्रतिक्रमण के कहने से सामायिक आ ही गया' ___ तपागच्छैकमंडन आचार्य श्रीमद्देवेन्द्रमूरिजी' कृत श्राद्ध प्रतिक्रमणवृत्ति ( वन्दारुवृत्ति ) में भी ऐसे ही कहा है, यथा
" प्रतिक्रमणं च कृतसमायिकेनैव कर्तव्यम्" अर्थ, सामायिक ले के ही प्रतिक्रमण करना चाहिये । जव शास्त्र इस प्रकार पुकार रहे हैं कि सामायिक विना प्र
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