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त्रिस्तुतिक-मत-मीमांसा ।
पूछा कि 'कोष कहां तक बना है ? ' उत्तर मिला कि 'प-वर्ग' चलता है । फिर पूछा कि ' बनाने का काम
कहां चलता है ' तव राजेन्द्रसूरिने कहा ' काशीजी में' में-आप भी राजेन्द्रसूरिजी की गृह बातें तो ठीक जानते
हैं जैसे कि उन का कोई घर का मनुष्य जाने । श्री कृ०-हम से राजेन्द्रसूरि कोई भी बात छिपाते नहीं थे। __ इस प्रकार जब श्रीकृपाचन्द्रजी के मुख से सुना तो मुझे इस हकीकत पर पूरा विश्वास बैठ गया कि अभिधानराजेन्द्रकोष ब्राह्मणों से ही राजेन्द्रसूरिजी ने तय्यार कराया है।
खास राजेन्द्रसरिजी के भक्त श्रावकों के मुख से कई दफे सुना है कि इस कोष के निमित्त रु. २००००० ) दो लाख के करीब खर्च हो चुके हैं तो अब विचार करने योग्य स्थल है कि इतने रुपये गये कहां ? खास निर्णयसागरयंत्रालय सरीखे छापाखाने में पांच सौ नकल छपवाने से रु. १) में ४ चार हजार के लगभग श्लोक छपते हैं, इस हिसाब से रु. २५०००) में १००००० श्लोकप्रमाण ग्रन्थ की ५०० कापियां तो निर्णयसागर प्रेस में छप सक्ती हैं तो दूसरे सामान्ययंत्रालय में रु. १५००० ) में उस ग्रन्थ की पांच सौ नकल छपे इस में शंका ही क्या है ? इन सब संयोगों से साफ साफ यह सिद्ध है कि ये मब रुपये इस कोप के बनाने और सुधारने वाले पण्डितों के पगार में खर्च हुए हैं छपवाने में तो इनका छठा या आठवा हिस्सा ही काफी है।
राजेन्द्रमूरिजी के श्रद्धान्ध भक्त लोग-जिन के आगे 'काला अक्षर भेंस बराबर' है-इस कोष के भागों की बाह्य स्थूलता को देख
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